मैं नारी हूँ
मैं नारी ,मैं नारी हूँ अबला नहीं बिचारी हूँ
स्वयंसिद्धा मैं अन्नपूर्णा मैं लक्ष्मी दुर्गा अवतारी हूँ ।
स्वयं तपी फिर नारी बनी मैं सबमें बल मैं भरती हूँ
स्तनपान कराके सुत को बलशाली मैं करती हूँ ।
मैं नारी——-अवतारी हूँ।
अपना सर्वस्व मैं अर्पण कर पति में ऊर्जा भरती हूँ
सास-ससुर की सेवा करती खुद मैं भूखी रहती हूँ।
मैं अबला कैसे ?बल भरती, मैं सबका बोझ उठाती हूँ
अपना बल सब में भर देती
बलहीन अबला कहलाती हूँ।
मैं नारी——अवतारी हूँ।
देश समाज के हित के खातिर मैं दुर्गा बन जाती हूँ
धन संचय कर घर को भरती लक्ष्मी मैं कहलाती हूँ ।
मैं औरों में बल भरने वाली भला मैं कैसे अबला हूँ?
बल जो था सब में बाँट दिया फिर बलहीन हो जाती हूँ।
मैं नारी——-अवतारी हूँ।
अधिकार
नारी नर से अधिकार भला
अपना कहो कब वो पायेगी,
या सदियों गुलामी में रह
यों ही कुचली जाएगी ।
नर और नारी मिलकर
कब पूर्णता को पाएंगें,
नर-नारी की यह विषमता
क्या कभी पट पाएगी ,
या पुरुषों के ठोकरों से
यूँहीं उछाली जाएगी ।
नारी ——कुचली जाएगी ।
मौन रहो तुम नारी हो
तुम अबला हो ,बेचारी हो,
पुरुष से तुम टकराओगी
तो मिट्टी में मिल जाओगी,
पीढ़ी दर पीढ़ी क्या चलेगी
केवल यही परिपाटी,
या कभी यह बदली जाएगी
बोलो इंसाफ कब पाएगी ।
नारी ——-कुचली जाएगी ।
नारी को मुक्त करने आगे
नारी को ही आना होगा,
पुरुष के अनैतिक सम्राज्य को
नारी को ही मिटाना होगा ,
सिंहासन पर हो आरूढ़ शक्ति
पुरुषों को दिखाना होगा ।
नारी ——–कुचली जाएगी। ।
कवयित्री -प्रेमशीला सिंह
मौलिक स्वरचित रचना
मोबाईल/whats -app: 9425008960
Last Updated on January 16, 2021 by pskv2bpl