बेटी
पढ़ें बेटियाँ, बढ़ें बेटियाँँ उच्च शिखर पर चढ़ें बेटियाँ सदाचार की भट्ठी मे तप अपना जीवन गढ़ें बेटियाँ ।
चूल्हे चौके तक ही सीमित नहीं रही अब तो यह बेटी ।
पढ़ लिखकर घर का,स्वदेश का मान बढ़ाती है यह बेटी ।
बनती है शिक्षिका, चिकित्सक निज कर्त्तव्य निभाती बेटी ।
करती नव पीढ़ी को शिक्षित स्वस्थ समाज बनाती बेटी ।
मातृभूमि की रक्षा हित अब सेना मे भी जाती बेटी ।
सरहद पर दुश्मन को भी अब डटकर सबक सिखाती बेटी ।
पर्वत की ऊँची से ऊँची चोटी पर चढ़ जाती बेटी ।
और तिरंगा गाड़ वहाँ भारत का मान बढ़ाती बेटी ।
राजनीति मे जब जाती है ऊँची कुर्सी पाती बेटी ।
राह समर्पण-सेवा का अपनाती,नाम कमाती बेटी ।
पत्रकार बनकर समाज को सच्ची राह दिखाती बेटी ।
माँ-पत्नी-बेटी-बहना का भी है फर्ज निभाती बेटी ।
घर बाहर के सब कामों मे सामंजस्य बिठाती बेटी ।
समय पड़े होती कठोर पर यूँ होती अति कोमल बेटी ।
अपना भारत धन्य जहाँ घर-घर मे पूजी जाती बेटी ।
उपर्युक्त कविता मेरी मौलिक और स्वरचित है।इस पर किसी तरह का कापीराइट विवाद नहीं है । अनन्तप्रसाद ‘रामभरोसे’ ग्राम पोस्ट-सागरपाली , जिला-बलिया। पिन कोड-277506 (उ.प्र.) भारत मो. न.-9838408017
Last Updated on January 17, 2021 by anantprasadrambharose