गांव शहर नगर की गलियों की
कली सुबह सुर्ख सूरज की लाली के
साथ खिली ।।
चमन में बहार ही बहार मकरंद
करते गुंजन गान नहीं मालुम चाहत जिंदगी जाने कब छोड़ देगी साथ।।
रह जाएगा चमन में गम का साथ।।
फिर किसी कली के खिलने का
इंतज़ार गली गली फिरता भौरा
बेईमान कली के खिलने का करता
इंतज़ार।।
गुल गुलशन गुलज़ार चमन बहार में कली की मुस्कराहट फूल की चाह आवारा भौरे की राह।।
भौरे की जिंदगी प्यार का
दस्तूर जिंदगी भर अपने मुकम्मल
प्यार की तलाश में घूमता।।
इधर उधर पूरी जिंदगी हो जाती
बेकार खाक भौरे को हर सुबह खिले फूलों का लम्हा दो लम्हा साथ ही जिंदगी का एहसास।।
पल दो पल के एहसास के लिये भौरे बदनाम आवारा दुनियां ने दिया नाम।।
भौरे की किस्मत
उसकी नियति जिंदगी प्यार
जज्बात लम्हा दो लम्हा फूल
का साथ जिंदगी भर कली के
खिलने का इंतज़ार।।
Last Updated on February 20, 2021 by nandlalmanitripathi