“तलाश”
वे वक्त के साथ
अपने आपको बदल लेते हैं |
हम उनके भीतर
झाँकते है |
निहारते हैं
उनकी परछाईयों को |
उनके प्रेम
कभी दिखते नहीं |
हमें खोजते-खोजते
और कितने वक्त
गुजर जाते हैं |
उनकी सादगी और
मायुशी को पढ़ने की
कोशिश करते हैं |
फिर
खो जाते हैं
उनके चेहरे पर
खींची लकीरों में |
शब्दों को पहचान पाना |
और उनके प्रेम की
थाह लगाना |
मेरे लिए
सागर में
डूबने जैसा है |
जहाँ तैरना नहीं आता
मेरे और अथाह सागर के बीच
सिर्फ गहराईयाँ ही रह जाती हैं |
वहाँ हमें कोई दूसरा
बचाना नहीं आता |
हम तलाशते
अपने प्रेम को
जिससे जीवन हमें
सजाना नहीं आता |
भटकते रहे
तलाश करते रहे
राहों पर कई काँटे चुभते रहे
जिस काँटे को हमें
खुद निकालना नहीं आता |
और प्रेम उसी बीच में
उलझकर रह जाता है
फूल और काँटों की तरह |
जिससे कभी हमें
सुलझना नहीं आता |
के.एम.रेनू
शोधार्थी
हिंदी विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय
Last Updated on January 7, 2021 by renujnu2016