कविताएँ –
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प्रेम
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नयनों के झरोखों से
उन्हें निर्निमेष निहारना।
चिरंतन साहचर्य की
असीम उत्कंठा लिए,
उनके आसपास मंड़राना।
और –
अंकुराते मन में
स्वप्नों के –
असंख्य दीपों का
जल जाना।
क्या प्रेम नहीं है?
* *
उनके आते ही –
मन – प्रसून का खिल जाना
चहकना – नाचना – गुनगुनाना
दिवा – रात्रि का सँवर जाना।
और –
उनसे दूर होते ही
हदय – कमल का मुरझाना।
जैसे –
शरीर से प्राण का निकल जाना!
मर्यादाओं में आबद्ध
बेसब्र अश्रुओं का –
नेत्र कोटरों में उतर आना।
प्रेम नहीं तो क्या है?
* *
नजरों से दूर होकर भी
दिल के करीब रहना।
अहर्निश –
कोमल अहसासों की बारिश में
भींगना।
कुछ चाह की नहीं
सर्वस्व अर्पण की
अंतहीन लालसा लिए –
हर पल जीना
प्रेम ही तो है!
चश्मे का फ्रेम
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बांकी-चितवन,
भोली-सी सूरत,
और –
मासूम अदा !
क्लास में –
बगल वाली बेंच से
तिरछी नजर से,
मुझे देखते देखकर
तुम्हारा –
मंद-मंद मुस्कुराना !
नाजुक उंगलियों में फंसी
कलम से –
कागज के पन्नों पर,
कुछ शब्द-चित्र उकेरना!
और –
उन्हीं उंगलियों से,
नाक तक सरक आये
चश्मे को –
बार-बार
ऊपर करना !
उफ़ !
वो चश्मे का फ्रेम !!
और –
फ्रेम-दर-फ्रेम
मेरे बिखरते सपनों का
फिर से –
संवर जाना !
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– विजयानंद विजय
पता – आनंद निकेत
बाजार समिति रोड
पो – गजाधरगंज
बक्सर (बिहार) – 802103
शिक्षा – एम.एस-सी;एम.एड्; एम.ए. (हिंदी)
संप्रति – अध्यापन ( राजकीय सेवा )
निवास – मुजफ्फरपुर (बिहार)
ईमेल – vijayanandsingh62@gmail.com
फोन / ह्वाट्सएप – 9934267166
Last Updated on January 3, 2021 by vijayanandsingh62