न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

6 मैपलटन वे, टारनेट, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from 6 Mapleton Way, Tarneit, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता

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कविताएँ –
———–

प्रेम
———

नयनों के झरोखों से
उन्हें निर्निमेष निहारना।
चिरंतन साहचर्य की
असीम उत्कंठा लिए,
उनके आसपास मंड़राना।
और – 
अंकुराते मन में
स्वप्नों के –
असंख्य दीपों का
जल जाना।
क्या प्रेम नहीं है?
    *              *
उनके आते ही –
मन – प्रसून का खिल जाना
चहकना – नाचना – गुनगुनाना
दिवा – रात्रि का सँवर जाना।
और –
उनसे दूर होते ही
हदय – कमल का मुरझाना।
जैसे –
शरीर से प्राण का निकल जाना!
मर्यादाओं  में आबद्ध
बेसब्र अश्रुओं का –
नेत्र कोटरों में उतर आना।
प्रेम नहीं तो क्या है?
    *               *
नजरों से दूर होकर भी
दिल के करीब रहना।
अहर्निश –
कोमल अहसासों की बारिश में
भींगना।
कुछ चाह की नहीं
सर्वस्व अर्पण की
अंतहीन लालसा लिए –
हर पल जीना
प्रेम ही तो है!

ख्वाब तुम्हारी आंखों में
———————————
एहसासों की तपिश लिए,
मैं ढूँढ़ूँ  साँसों-साँसों  में।
बैठे – बैठे  देख  रहा हूँ,
ख्वाब तुम्हारी आँखों में।
 
यादों  के  रपटीले  पल,
जब अपनी ओर बुलाते हैं।
कतरा-कतरा घुल जाता,
मधुमास तुम्हारी आँखों में।
 
सपनों की उन गलियों में,
मन यायावर-सा फिरता है।
मिल जाता  है  जीने का, 
अंदाज तुम्हारी आँखों में।
 
एहसासों की इस वादी में
तेरी ही खुशबू बसती है।
इस क्लांत-श्रांत मन-उपवन का
चिर हास तुम्हारी आँखों में।
 
तुमसे मिलकर जीवन की,
सारी उलझन मिट जाती है।
मिलता है, इस जीवन का,
विस्तार तुम्हारी आँखों में।
 
तुम्हीं बता दो, कैसे भूलूँ,
उन उजियाली यादों को।
बिन बोले, सब कहने का,
अभिप्राय तुम्हारी आँखों में।
 

चश्मे का फ्रेम
——————
बांकी-चितवन,
भोली-सी सूरत,
और – 
मासूम अदा !

क्लास में – 
बगल वाली बेंच से
तिरछी नजर से,
मुझे देखते देखकर
तुम्हारा –
मंद-मंद मुस्कुराना !

नाजुक उंगलियों में फंसी 
कलम से –
कागज के पन्नों पर,
कुछ शब्द-चित्र उकेरना!
और –
उन्हीं उंगलियों से,
नाक तक सरक आये
चश्मे को –
बार-बार 
ऊपर करना !

उफ़ ! 
वो चश्मे का फ्रेम !!
और –
फ्रेम-दर-फ्रेम
मेरे बिखरते सपनों का
फिर से –
संवर जाना !

——————-

– विजयानंद विजय
पता –  आनंद निकेत 
बाजार समिति रोड
पो – गजाधरगंज
बक्सर (बिहार) – 802103
शिक्षा – एम.एस-सी;एम.एड्; एम.ए. (हिंदी)
संप्रति – अध्यापन ( राजकीय सेवा )
निवास – मुजफ्फरपुर (बिहार)

ईमेल – vijayanandsingh62@gmail.com
फोन / ह्वाट्सएप – 9934267166

Last Updated on January 3, 2021 by vijayanandsingh62

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