हालात ए किसान
यह जो तेरे घर में अन्न आया है।
जरा सोचो किसने पसीना बहाया है।
चाह मिटायी , चिन्ता पाई , चैन की नींद ना आई,
तुझे दिया, खुद न खाया, बासी रोटी से भूख मिटाई।
भोर उठा , मुंह न धोया ,मिट्टी से सनी काया ,
फटे कपड़े टूटी चप्पल ,आदर भी ना पाया।
दीनहीन लगता रहता, हाथ में न कमाई,
खेत-खलिहानों में ही पूरी जिंदगी बिताई।
थका मांदा लगा रहता ,इसने ना चैन पाया,
कभी सूखा ,कभी बाढ़, ओलों ने बड़ा सताया।
जलती धूप , चमकती बिजली, ठंड इसे काम से न रोक पाई,
स्वयं ना बचे भले तूफानों से, मगर अपनी फसल बचाई ।
यह जो तेरे घर में अन्न आया है,
एक किसान ने पसीना बहाया है।
-डॉ. सुखबीर दुहन, हिसार
Last Updated on December 4, 2020 by hisarsushil