महिला दिवस प्रतियोगिता हेतु कविता
“नारी हूँ मैं…”
एक मूक अभिव्यक्ति हूं मैं,
खुद में सम्पूर्ण शक्ति हूं मैं,
विश्वास का दूसरा नाम हूं,
चलती-फिरती भक्ति हूं मैं…
हां,
नारी हूं मैं…
स्रष्टा हूँ मैं, द्रष्टा हूँ मैं,
अपनों की दुखहर्ता हूँ मैं,
जज़्बातों का ज्वालामुखी हूँ मैं,
भीतर से कोमल कली हूँ मैं।
मुझको अबला कहने वालो,
सबला की परिभाषा हूँ मैं,
टिमटिमाते दिए का तेल हूँ मैं,
निराशा की भी आशा हूँ मैं।
हां,
नारी हूं मैं…
अपने आंसू पीती हूं मैं,
अपनों के लिए जीती हूं मैं,
सबका दर्द सीने पर लिए,
अपने लब सीती हूं मैं…
हां,
नारी हूं मैं…
मैं बंधी हूं सपनों के संसार से,
अपनों के प्यार से, दुलार से,
पति की मनुहार से,
बच्चों की मुस्कान से,
मकान से
घर बन जाने वाली दीवारों से,
रग-रग में बसे
अपने घर संसार से
बंधी हूं मैं…
हां,
नारी हूं मैं…
कभी पति कभी बच्चों के लिए,
अपने अरमान दिल में दबा लेती हूं,
हंसती हूं सबके साथ,
आंसू अकेले में बहा लेती हूं,
छुपा कर अपने दु:ख-दर्द
बन्द पलकों के पीछे,
अपनी हिम्मत समेट
हंस-हंसा लेती हूं मैं…
हां,
नारी हूं मैं…
ख़्वाब देखती हूं खुली आंखों से,
खुशियों के महल सजा लेती हूं,
तिनका-तिनका जोड़ अरमानों का,
आशियाना अपना बना लेती हूं…
हां,
नारी हूं मैं…
सुलगते हैं मेरे भी जज़्बात,
सिसकते हैं मेरे भी अरमान,
कसक उठती है मेरे भी दिल में,
महकते हैं मेरे भी ख्यालात…
क्यूं न हों
आखिर इक इंसान हूं मैं,
हाड़-मांस का पुतला नहीं,
जीता-जागता, चलता-फिरता,
ईश्वर का इक चमत्कार हूं मैं,
कायनात का इक वरदान हूं मैं…
स्वाभिमान की इक मिसाल हूं मैं
हिम्मत की इक मिसाल हूं मैं,
उम्र के हर दौर को चुनौती देती,
आत्मविश्वास की इक मिसाल हूं मैं…
हां, नारी हूं मैं,
हां, नारी हूं मैं…..
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नेहा शर्मा ‘नेह’
(स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित)
Last Updated on January 24, 2021 by neha.nks90