नवगीत
सबका अपना तौर-तरीका
सबके अपने पैमाने हैं।
हैं कई सभ्यताएँ
और उनमें संघर्ष है।
कैसे होगा फिर
इंसानियत का उत्कर्ष है।।
अगर हमारा पंथ निराला
उसके सौ-सौ अफसाने हैं।
एकीकृत करने का अब
कोई वक्त नहीं है।
औ देशभक्ति में
बहने वाला रक्त नहीं है।।
अगर यहाँ है फिल्मी दुनिया
तो कैसे फिल्मी गाने हैं।
देश नहीं है मानो
मात्र भूमि का टुकड़ा है।
चंदा जैसे सुंदर-सुंदर
उसका मुखड़ा है।।
सबका अपना-अपना भाग्य
मोहर लगे दाने-दाने हैं।
अविनाश ब्यौहार
जबलपुर मप्र
Last Updated on November 22, 2021 by a1499.9826795372