*मेरा* *वतन*
वतन है या तन है मेरा
प्राण न्योछावर इस पर कर जाऊं मैं
सांस है या लहू है मेरा
भारत पर न्योछावर हो जाऊं मैं
फूल है या है कोमल हृदय
इस पर स्वाभिमान लुटाऊं मैं
स्वर है या उन्माद है इसका
गीत इसी के गाऊं मै
उपज इसकी या सोंधी खुशबू
वतन की मिट्टी में लौट जाऊं मैं
मेरी अभिलाषा….
मिले मौका तो ……….. फूल सा बन
अपनी खुशबू से इसको महकाऊं मैं
अपनी जान कुर्बान कर जाऊं मैं
मातृभूमि का वीर कहलाऊं हूं मैं,
वतन का वीर कहलाऊं मैं।
ऋतु गर्ग
स्वरचित, मौलिक रचना
सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल
Last Updated on January 13, 2021 by gargritu0101