जब देर रात तक,
भीगी पलकों से,
जागती रहती हूं,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
कभी मेरी तन्हाई,
मुझसे रूठ कर,
कोने में रोती रहती है,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
जब खुद में खो जाती हूं,
जागते हुए सो जाती हूं,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
खुदा से खफा होकर,
अनगिनत सवाल लिए,
चादर जब ओढ़ लेती हूं,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
कई अधूरी सी ख्वाहिशें,
मन को उद्वेलित कर,
एक आंदोलन सा करती हैं,
तो मेरे अपनों को शिकायत रहती है।
भटक कर शब्दों के जंगल में,
दिल शिकायत करता है,
कि खुद को बदल लो थोड़ा सा,
तुम्हारे अपनों को शिकायत रहती है।
Last Updated on December 22, 2020 by jyotikumar8516
1 thought on “मेरे अपनों को शिकायत रहती है”
कुछ कहना चाहे तो शब्द हीन प्राणी , न समझा पाये
वफा से अपनी सब का प्यारा और दुलारा
भूख प्यास उसे व्याकुल न करती चुप से दिल मे उतर जाता है।
मेरी आहट पाते ही मेरे पीछे पीछे चलता जाता है।
इतना स्नेह भरा है , कभी न शिकायत करता ।
अगर न हाथ रखू, उसके सिर पर अश्रु भी बहाता है।
मेरे ज्वर कंपन की स्थिति मे वह भोजन नही खाता है।
प्रकृति की अनुपम भेट ••••••
मेरे लिए बहुमूल्य मेरा प्यारा •••••••🍃🍃🍃🍃
आकांक्षा रूपा चचरा की ✍से