स्त्री सम्मान है
पृथ्वी का, प्रकृति का
समाज की रगों में
बहता गर्म लहू है
धड़कन है परिवार की
संबधो का ऊँचा मस्तक है
सपनों भरी आँख है बच्चों की
देश की प्रगति का चिह्न है
मंदिर की मूरत नहीं
वहाँ जलने वाली पवित्र
दीप और धूप है
स्त्री हर रूप में समाई है
वही विश्वरूप है
स्त्री गर्व से भरा
अहंकार है
स्त्री निराकार को भी
करती साकार है
गीता टण्डन
8.3.2020
Last Updated on January 20, 2021 by geetatandon1