मन ले चल.. डॉ.प्रदीप शिंदे
सुबह सुरज की किरन
नींद से जगाती आंगन
गांव पाठशाला शिक्षक
शिक्षा मिली अनमोल
समान इतवार सोमवार
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
पनघट घड़े लेकर दुल्हन
पायल की सुंदर छम छम
अनेक खेलों में मन मेल
हार जित में नोंक झोंक
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
मेले घुमना झुले झुलना
खुशी से झुम उठना
दादी की कहानी सुनना
खुले आकाश ख्वाब देखना
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
रुठने मनाने के हसीन दिन
हंसते रोते वे खुले दिल
शाबाशी से पीठ थपथपाना
थप्पड़ में भी स्नेह पाना
मन ले चल मेरे बचपन,
आज उदास है आलम
प्रा.डॉ.प्रदीप शिंदे 7385635505
Last Updated on January 14, 2021 by pradeepmshinde28