न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

6 मैपलटन वे, टारनेट, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from 6 Mapleton Way, Tarneit, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

फूल की किस्मत

Spread the love
image_pdfimage_print

फूल की किस्मत को क्या कहूँ
बया क्या करूँ हाल ।

बड़े गुरुर में सूरज की पहली
किरण के संग खिली इतराती
बलखाती मचलती गुलशन
बगवां की शान।।

फूल के सुरूर का गुरुर भी लम्हे
भर के लिये बागवाँ माली ही उसे
उसके जिंदगी के डाल से जुदा कर देता।।

किसी और को सौंप देता फूल की
किस्मत के इम्तेहान का दौर शुरू
होता।।

डाली का साथ छुटते ही अपनों
से बेगाना होते ही सुबह देवो के
सर पर बैठती साध्य साधना आराधना के पथ उद्देश्यों में
खुशबु बिखेरती ।।

देवों के शीश पर बैठ मानव के
मन्नंत मुराद की उम्मीद फूल।

सुर बाला की गहना बनती महफ़िलों की रौनक प्यार मोहब्बत की महफूज मकसद
मंजिल की ख़ास फूल।।

गजरे में गुथी जाती माले में पिरोई
जाती गुलदस्ते में जकड़ी जाती
हर वक्त जगह मुझसे ही दुनियां
में खुशियाँ आती।।

बहारों में महबूब के आने पर बरसती वरमाला पसंद का
परवान जमीं आकाश मैं
बनती।।

रात की गली सुबह फूल बन
कर खिली सुबह से शाम तक ना
जाने कितने इम्तेहान से गुजरती।

हर किसी की खुशियों का साझीदार बनती शाम ढलते
पैरों से रौदी जाती ।

मेरी हर
पंखुड़ी से आवाज आती हे
ईश्वर काश मैं फूल न होती।।

मैं श्रद्धा की अंजलि हूँ मुझे
हाथ में लेकर इंसान जीवन
रिश्तों के भावों का 
दुनियां में करता इज़हार।।

मैं वियोग विछोह के दर्द
संबंधो की अंजलि श्रंद्धांजलि हूँ।

अर्थी के महत्व जीवन 
सच जैसे मैं डाली से टूटती
वैसे मानव के बिछुड़ते रिश्तों
की क्रंदन मैं फूल निश्चिन्त
भाव और निश्छल हूँ।।

मुझे भी अपने दुनियां में
होने का होता गर्व
जब मातृ भूमि के कर्म
धर्म पर मर मिटने वाले
की राहो की बन जाऊं मैं
धुल फूल।।

तब मैं खुद पे इतराती दुनिया
को बतलाती मेरा हर सुबह
चमन में खिलना मेरी हस्ती
की मस्ती है ।।

बन जाऊं शहीदों
के कफ़न की शोभा बीर सपूतों
की गौरव गाथा की सच्चाई मैं फूल।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

Last Updated on February 20, 2021 by nandlalmanitripathi

Facebook
Twitter
LinkedIn

More to explorer

रिहाई कि इमरती

Spread the love

Spread the love Print 🖨 PDF 📄 eBook 📱रिहाई कि इमरती – स्वतंत्रता किसी भी प्राणि का जन्म सिद्ध अधिकार है जिसे

हिंदी

Spread the love

Spread the love Print 🖨 PDF 📄 eBook 📱   अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस – अंतर्मन अभिव्यक्ति है हृदय भाव कि धारा हैपल

Leave a Comment

error: Content is protected !!