पेड़, पौधे ,जंगल कट रहे नए, नए नगर, शहर बस रहे। प्रकिति कुपित मानव पुलकित ब्रह्मांड के मानक बदल रहे।।
जहर हवा ,दूषित जल है जीवन कितना मुश्किल है नदियां, झरने ,झील सुख गए अपनी पहचान से रूठ गए।।
नदियां जीवन रेखा सी नित्य, निरंतर निर्मल ,निर्झर बहती कहती भारत भूमि जन्नत कि शान हो रहे बीरान।।
नदियां नालों में तब्दील इंसानी हरकत हद से प्रदूषित संकीर्ण हर सुबह कसमे खता है इंसान धरती को स्वर्ग बनाएंगे पर्यावरण बचाएंगे।।
ढले शाम नई गन्दगी देकर पृथ्वी कि हस्ती प्रदूषित और विभूषित करत जाता इंसान।।
इंसान का एक दूजे से नहीं कोई रिश्ता नाता इंसान ही प्रदूषण बेचता इंसानी समाज ही खाता और पचाता पर्यावरण बदहाल।।
आटा, चावल ,घी ,तेल ,मशाला जाने क्या ,क्या दवाई और मिठाई आधा असली आधा नकली ,नकली का बोल
बाला इंसान।।
इंसानो को खुद कि चिंता ही नहीं प्रकृति धरा धन्य को क्या बचा पाएगा। आने वाली नाश्लो को वीरान बीमारी कि युग सृष्टि घुट घुट मरने को दे जाएगा।।
तील तील मरता इंसान अपनी पैदाईस जिंदगी पर सिर धुन धुन कर रोयेगा पछतायेगा।।
अंधा धुंध कटते बृक्ष जंगल।बनता मैदान प्रकृति के प्राणी मरते पल पल करते इंसानों से जीवन रक्षा कि गुहार।।
इंसानो ने उनका घर ,जीवन ,छिना सभ्यता विकास कि दौड़ होड़ में मरते मरते युग इतिहास में कहानी किस्सों के बनते गए किरदार।।
मरते ,मरते अस्तित्व को लड़ते लड़ते इंसानों को देते जाते श्राप मेरा तो आश्रय अस्तित्व है छीना तुम खुद के अस्तित्व में करोगे हाहाकर लम्हा लम्हा भय भयंकर झेलोगे संताप।। झेलोगे नामी और सुनामी धरा डोलती बोलती और तूफ़ान।।
तेरे कर्मो का फल प्रकृति पर्यावरण का श्राप परिणाम मानव और मानवता के लिये नहीँ क़ोई विकल्प नही संयम
संकल्प ही शेष आज।।
प्रकृति बचाओ, युग बचाओं, शुद्ध हवा और पानी जल ही जीवन ,वन ही जीवन झरने नदियां और पहाड़,प्रकिति जिंदगानी।।
परिवार प्रकृति का सरक्षण ना हो।कोई प्रदूषण हो स्वच्छ हवा और पानी हो स्वस्थ मानव मन और काया लम्बी जिंदगानी हो।।
कलरव करती नदियां मौसम ऋतुए चलती जाएँ अपनी गति और चाल प्रकृति का हर प्राणी मानवता का मित्र रहे ना पिघले ना ग्लेशियर ना बढे धरती का ताप ।।
समन्दर से ना उठे क़ोई गुबार सर्दी,गर्मी ,वर्षा शरद पृथ्वी के अभिमान ।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
Last Updated on March 19, 2021 by nandlalmanitripathi