उत्तरायण हो चले प्रभाकर
अंधेरो की लंबी रात गयी
चाहूं ओर फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुवन सा सारा।।
खेतों में हरियाली झूमती
धान- गेहूँ की बाली कलियों का खिलना भौरों का गुंजन फूलों की गमक नव जीवन जांगरण चेतना।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
मधुर राग कोयल की प्रातः बेला
मंदिर में घंटे घड़ियालों की संध्या पूजा
सूर्य , शनि पिता पुत्र का संगम
शुभ काल कलेवर का अभिनंदन
उल्लास उदित प्रातः संध्या का युग मेला।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
सर्द शाम की आग ताप में
तिलकुटिया गुड़ ढोल नगाड़ो की
थाप पंजाबियत की लोहड़ी का प्यारा पंजाब।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
धान की फसलें आयी मनोकामना की
पूर्णतया गांव किसान के संग लायी गांव किसान की अविनि खुशिया संसार पोंगल निराला प्यारा परम्परा पर्व शान।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
पूर्वोत्तर की शान निराली
हरियाली मुस्कान का प्राणी प्राण
विहू धन धान्य का स्वागत विश्वाश।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
हर प्रातः सूर्य का पूरब में उदय उदित
लाली लालिमा जीवन का याथार्त
विहू मानव की खुशी खूबसूरती का
प्रबाह।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
पावन नदियों में स्नान दान पुण्य
जीवन का धर्म मर्म सत्य सनातन
भारत की विश्व पहचान।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
तिल -तिलकुट चुड़ा -दही
नैवेद्य संस्कार की संस्कृति
मकर संक्रांति का उपहार।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
पतंग उड़ाते बच्चे बूढ़े जवान
हर हृदय भावों में जश्न जोश
लहलाती फैसले आशाओं के मंगलमय
मधुमास बसन्त का दस्तक स्वागत
मकर संक्रांति उल्लास।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
भारत भूमि की बात निराली
जहाँ ऋतुये मौसम भी न्यारी प्यारी
हर मौसम ऋतुओं का निराला भाव
त्योहारों की मस्ती मानव हद हस्ती का अंदाज़ ।।
उत्तरायण हो चलो प्रभाकर
अंधेरों की लंबी रात गयी
चाहूं फैला उजियारा
उत्साह उत्सव की गूंज
युग मधुबन सा सारा।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Last Updated on January 14, 2021 by nandlalmanitripathi