उड़ान…
सुनो! भारी हो गए हैं तुम्हारे पंख
झटक दो इन्हें एक बार
उड़ान से पहले इनका हल्का होना
बहुत आवश्यक है
इन पर अटके हैं कुछ पूर्वाग्रह
कुछ कुंठाएँ जिन्हें तुमने सहेजा है
और सहेजे जा रही हो
उड़ान की यदि है कामना
नन्हे कोंपलों की भांति
चीर दो ज़मीन का सीना
यदि है तुम्हें उड़ना
पंखों को झटक डालो
न सोचो कि वह क्या सोचेगा
उसकी सोच का एक भी हिसाब
तुम अपने पास मत रखो
बहुत कष्टप्रद होता है
किसी हिसाब का पाई-पाई तय करना
पहली बरसात और धरती के..
हरे होने के बीच जो संबंध है
वह स्वयं में नैसर्गिक है
इनके लिए किसी प्रकार के ऋण को
उंगलियों पर गिनना
तुम्हें सीमाओं में बाँट देता है
और तुम अपने पंखों पर फिर से
टाँक लेती हो कई सवाल
और उनके उत्तर ढूँढती धीरे-धीरे
इन पंखों को स्वयं में समेट लेती हो
और….
थोप देती हो अपनी उड़ान को
आने वाली किसी पीढ़ी पर…
(बीना अजय मिश्रा)
Last Updated on January 18, 2021 by beena9279