भारत के पूत
धन्य भारत के वीर सपूत
धन्य भारत की माताएँ।
मातृभूमि की रक्षा के हित,
निज जीवन कुर्बान किए।
कारगिल की जंग हो चाहे
आपदा से लड़ने की बारी।
भारत भू की ललनाओं ने
निज कोख भू पर है वारी।
सर्दी गरमी बरखा सहकर,
जाति पाति भेद से उठकर।
कदम मिलाकर एक रंग हो,
शान तिरंगे की कम न हो।
शत्रु दल भी शीश नवाता,
रण भू में शेर जब जागा।
भुज बल देख थर थर काँपा,
कर सके कोई बाल न बाँका।
पर्वतों का चीर दे सीना,
हवा बर्फ़ीली में दे पहरा।
सूने रेगिस्तान से लड़कर
देश प्रेम से नहीं कुछ बढ़ के।
सैनिक नहीं ये हैं रखवाले,
रक्त संबंधों को करे किनारे।
कर समर्पण सब दिन रैना,
रास्ता देखें परिवार के नैना।
स्वाभिमान न जाने पाए,
अलख यही मन में जगाए।
त्याग चले कुछ सपने अपने,
लिए तिरंगा और शीश नवाए।
तन मन धन सब किया समर्पित,
फिर भी देखो आँखें पुलकित।
मात पिता का चौड़ा सीना,
हुआ सफल उनका यह जीना।
–
मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी)
राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत
माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार
प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ l
उद्देश्य- हिंदी को प्रशासनिक कार्यालयों में लोकप्रिय व प्राथमिक संचार की भाषा बनाना।
Last Updated on January 19, 2021 by mds.jmd
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अतिउत्तम