जीवन पथ यदि कठिन लगे,
तुम सरल ज़रा बन कर देखो,
रस सुधा मात्र की होड़ मची,
तुम गरल ज़रा बन कर देखो।
क्षुधा नहीं मिट सकती,
धन लोलुपता की आसानी से,
सघन कपट के वन में फिर,
तुम विरल ज़रा बन कर देखो।
पाषाण बने इस कलयुग में,
मानवता खत्म हुई तेरी,
काठ हृदय परित्याग कर,
तुम तरल ज़रा बन कर देखो।
माया मोह की मिथ्या में,
तुम घिरे हुए हर क्षण जैसे,
निर्बल मन की चतुराई से,
तुम सबल ज़रा बन कर देखो।
सुख दुख के क्षण इस जीवन में,
दिन रात सदृश हैं रूप लिए,
नित रोज़ नई बाधाओं के,
तुम युगल ज़रा बन कर देखो।
पुरुषार्थ भली है चीज मगर,
रण के पथ पर भी ले जाती,
जब बल से ना हो सिद्घ मनोरथ,
तुम निर्बल ही ज़रा बन कर देखो।
परहित जैसा ना धर्म कोई,
फिर स्वार्थ भाव है क्यूं हावी,
सूखी नदियों से नीरस क्यूं,
तुम सज़ल ज़रा बन कर देखो।
हम बने राम तो रामराज्य,
लंका हो निर्मित रावण से,
कुमति की काली छाया से,
तुम निर्मल तो ज़रा बन कर देखो।
तुम सरल ज़रा बन कर देखो।
सादर🙏
Last Updated on January 22, 2021 by rtiwari02