स्त्री नहीं श्री है, जिसे तुम रुलाते।
रुठ अगर वो जाये तो उसको काली समझो।।
जो अबला कही जाती, उसे बल का भंडार समझो ।
अपने रक्त से पोषण करने वाली, करुणा अवतार समझो ।।
स्त्री नहीं…
श्री सुख-समृद्धि यदि चाहो तो उसे न रूलावो,
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते का सूत्र अपनावो।
उसकी भावनाओं को ना ठेस पहुंचाओ,
उसके आदर को अहसान न समझो ।।
स्त्री नहीं…
उसके त्याग को न भूलो तुम,
उसके जीवन के महत्ता नहै कम।
वह तुमसे किये का उपकार ना चाहती,
उसे तुम मां बेटी बहू कुछ तो समझो।।
स्त्री नहीं…
उसके बिना न यज्ञ होते, न कर्मों का कोई ठिकाना।
कैसे बिन उसका जीवन हो पूरा,
उसे तुम मुक्ति का कारण समझो ।।
स्त्री नहीं…
वो न होती तो जन्म कैसा हमारा,
पापों के प्रायश्चित अवसर न मिलता।
जन्म चौरासी का चक्कर न काटो,
उसको तुम तारण का कारण ही समझो।।
स्त्री नहीं…
स्त्री बिन पुरुष का न कोई ठिकाना,
उसके मान का आदर क्या करेगा जमाना।
उसे तुम समस्या न, समाधान ही मानो।
उसे अपने जीवन का आधार समझो।।
स्त्री नहीं…
संपर्क : डॉ. श्याम लाल गौड़, श्री जगद्देव सिंह संस्कृत महाविद्यालय सप्त ऋषि आश्रम हरिद्वार, -स0प्रवक्ता, मोबाईल : 9368760732, ईमेल पता : [email protected]
Last Updated on January 4, 2021 by srijanaustralia