कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
जिंदगी दौड़ती है चाहतों के रफ्तार में।
कहीँ जब शाम ढलती है जिंदगी
ठहर सी जाती है चाहतों के चाँद
के इंतज़ार में।।
इंसा हर लम्हे को जीता चाहतों
ख्वाईसों के इंतज़ार में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है ..:….
सुबह औ शाम इंसा तन्हा ही जीता जन्हा ही जीता रिश्तों के खुमार में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
उम्र गुजरती जाती है उम्र गुजरती जाती है धुप छाँव गम ख़ुशी बहार
में ।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
सांसो धड़कन का इंसा कस्मे है खाता जिन्दगी के प्यार इज़हार में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
बचपन याद नही यौवन बीता जाता जश्न जोश जज्बा गुमान में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
जँवा इंसा उगता सूरज उम्मीदों
आरजू की उड़ान में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
ढलता यौवन मकशद मोशिकी का
तराना जिंदगी की शाम में।।
रौशन चाँद का आना जिंदगी का
मुस्कुराना सफ़र है सुहाना
कभी जिंदगी ऐसी दुनिया को मिलती है दुनियां सूरज चाँद संग ज़मीं पे जीती है खुशियों के
कायनात में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
Last Updated on February 7, 2021 by nandlalmanitripathi