ज़िंदगी में जो पढ़ा है,
सब निरर्थक जान पड़ता,
आचरण के पाठ सारे,
पाठ्यक्रम से हट गये हैं !
रीढ़ पर अपनी खड़े होकर चले ,
रात को हम दिन भला कैसे लिखें,
मापदण्डों पर न उतरे वक़्त के,
जो रहे अंदर वही बाहर दिखे !
धार के विपरीत चलकर,
पार कैसे हो सकेंगे ?
राजपथ की रौशनी से,
इसलिये हम कट गये हैं !
@ मुकेश त्रिपाठी
Last Updated on January 21, 2021 by tripathim9