प्रातः नौ बजे दफ़्तर जाने को
चाहे जो भी हो मौसम का मिजाज।।
घर से निकलता दिन शुभ मंगल हो
कोई ना हो विवाद अशुभ ईश्वर से
आराधन करता।।
कार्यालय के मुख्य द्वार पहुंच कर
अपनी दोपहिया वाहन चौकीदार
कक्ष के बगल दाएं बाए खड़ी करता।।
पुनः समीप सड़क पर मुकसुध्धि गुटका शौकीन दुकान पर गुटका क्रय करने को पहुंचता।।
एक छोटी सी काठ की गुमटी
बैठी अधेड़ उम्र की औरत प्रतिदिन छोटी हद हैसियत के व्यवसाय की स्वामिनी मालिकिन।।
मुस्कुराते मिलती मैं गुटखा खरीदता
खाता प्रतिदिन सुबह कार्यलय का
का कार्य शुरू करता।।।
शौख कहूँ या
लत या कहूँ नशा या आदत
से मजबूर आदी ।।
गुटके की तलब तमन्ना अधेड़
उम्र औरत की दुकान को जाने को
प्रेरित करती प्रतिदिन दैनिक दिनचर्या की हद हस्ती मस्ती।।
अधेड़ उम्र की महिला के
जीवन परिवार समाज पालन
पोषण का आधार मात्र पान,
बीड़ी ,तम्बाकू ,की गुमटी दुकान।।
मैं गुटखा खरीद प्रतिदिन सुबह
शौख नाशा आदत की तृप्ति कर
अपनी धुन मस्ती का मतवाला इतराता
कार्य कार्यालय का शुरू कर पाता।।
प्रतिदिन आते जाते गुटखा
शौख के नाते अधेड़ उम्र
औरत की गुमटी की दुकान
मेरे लिये लगती देवालय।।
बिना सुबह प्रतिदिन जाए
उसकी दुकान से खरीद कर
गुटका खाये चैन नही रहता
खोया खोया लगता कुछ खोया खोया।।
गुटके की गुमटी दुकान की मालिकिन अधेड़ उम्र औरत।।
नारी साहस शक्ति की नई
चेतना की मेरे लिये जान
जागृति पहचान।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
Last Updated on February 18, 2021 by nandlalmanitripathi