पत्थर तोड़कर भी,
नाम मिला ना दाम मिला।
बस छोटा सा काम मिला।
सर्दी व बारिश गहरी में,
गर्मी की दोपहरी में,
कभी सड़क बनी, कभी महल बना,
तनिक नहीं आराम मिला। बस छोटा सा …
इतना सारा परिश्रम कर,
कमा पाता बस पेट भर,
झोपड़ों में करता है बसर,
उसको न अपना धाम मिला। बस छोटा सा …
बीमारी उसकी हवा हो जाती,
पसीने से ही दवा हो जाती,
श्रम के धन पर इतराता;
खाने को नहीं हराम मिला। बस छोटा सा …
हाथ का लिए भरोसा भागे,
फैलाता ना किसी के आगे,
संतुष्टि उसके मन से झांके,
पर झंझट और झाम मिला। बस छोटा सा …
– एस. डी. तिवारी, एडवोकेट
Last Updated on January 4, 2021 by srijanaustralia