कविता क्रमांक 1
शीर्षक- चाहत
न वादे न कशमें न रस्मे बड़ी है|
ना चाहत है ,छोटी ना मोहब्बत बड़ी है|
हो तुम हमारे ,है हम भी तुम्हारे,
बस दिल से दिल की ये मंशा बड़ी है|
हां होगी ,शिकायत तुम्हें हमसे लेकिन,
शिकायत से हरदम ये चाहत बड़ी है|
है नाता, ये दिल का लगी ये बड़ी है|
तुम्हारे सिवा कुछ ना आता नजर है|
समर्पित भी है , प्रेम परिपक्व भी है|
ना समझो अगर तुम, तुम्हारी कमी है|
बड़ी बेफिक्र सी है, चाहत तुम्हारी
मगर ये ही चाहत ,तो मेरी कमी है
तुम्हें चाहना बस ,तुम्हें चाहना ही
ये निर्विकल्प चाहत ,सभी से बड़ी है
समुंदर हो तुम ,एक छोटी नदी में
तुम्ही मैं समाना ,यही जानती हूं |
तुम्हारी हूं लेकिन, तुम्हें मांगती है|
रचना स्वरचित मौलिक
कविता क्रमांक 2
शीर्षक- परिपक्व प्रेम
हां ,कलयुग में भी होता है,
सतयुग सा प्रेम|
जो सिर्फ आकर्षण तक सीमित नहीं रहता|
जिसमें आकर्षण से कहीं अधिकता,
समर्पण की होती है|
जिसमें पाना मायने नहीं रखता
जिसमें प्रेम को जिया जाता है|
प्रेम में कभी राधा कभी मीरा
तो कभी रुकमणी सा जीवन जिया जाता है|
इस तरह का प्रेम दायरों को,
लांघना नहीं जानता
दायरों में बंधना जानता है|
खुद से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है
साथी जिसके लिए समर्पण दिया जाता है|
ऐसा प्रेम अभिव्यक्त कम ही होता है|
मौन होकर भी ,व्यक्त बहुत होता है|
यह प्रेम परिपक्व बहुत होता है|
रचना स्वरचित मौलिक
नाम- वंदना जैन
पदनाम- प्रोपराइटर आफ मार्बल शॉप
संगठन- ब्राह्मी सुंदरी संभाग ज्ञान इकाई महिला मंडल ललितपुर उत्तर प्रदेश
पता-श्री जितेंद्र कुमार जैन बंदना मार्बल डैम रोड ललितपुर उत्तर प्रदेश
ईमेल पता[email protected]
मोबाइल नंबर-9696690848
व्हाट्सएप नंबर-9616475366
Last Updated on January 8, 2021 by jainvandana492