अशांत मन…
मन का युद्ध स्वयं के मन से,
जीत भला कैसे होगी…!
विमुख हुए अपने वादों से.,
प्रीत भला कैसे होगी…!
मौन शब्द का अर्थ…
अगर ना समझो तुम…
हृदय मध्य का मर्म…
अगर ना समझो तुम…
अफसोस मेरे मन में बैठा,
आघात करे…!
प्रतिघात…अगर ना समझो तुम…!
जन का युद्ध अगर नियमों से,
रीत भला कैसे होगी…!
सप्तक युद्ध अगर हो सुर से,
संगीत भला कैसे होगी…!
ये कैसा है साथ…
अगर तुम मन से मेरे साथ नहीं…
बस क्षणिक तनिक से प्रेम विवश…
मेरे हांथों में हांथ नहीं…
ये कैसी है दृष्टि तेरी…
ना देख रहे मेरे मन को…
हर बंजर को तुम देख रहे…
बस काट रहे मेरे वन को…
प्रेमी का जो युद्ध प्रियम से,
मीत भला कैसे होगी…!
प्रण के उस युद्ध से भाग लिए,
वो नीति भला कैसे होगी…!
अब प्रीत भला कैसे होगी…!
अब जीत भला कैसे होगी…!
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Last Updated on January 22, 2021 by rtiwari02