सृजन आस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका
(महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता लेखन)
(प्रतिभा नारी को भी अपनी दिखलाने दो)
प्रतिभा नारी को भी अपनी दिखलाने दो
बाधाओं को लांघ उसे बाहर आने दो
(1)
हर युग में रावण सीता को हरता आया है
चीर हरण दुशासन उसका करता आया है
दाँव पे रखकर नारी को नर छलता आया है
अग्नि परीक्षा लेकर लज्जित करता आया है
राम भरोसे नारी को अब मत रह जाने दो
बाधाओं को लांघ…
(2)
देख अकेली महिला को जो हवस मिटाते हैं
इंसानी रिश्तों को पल में बिसरा जाते हैं
मौक़ा पाकर इज्जत को नीलाम कराते हैं
साक्ष्य मिटाने ख़ातिर हत्या तक कर जाते हैं
ऐसे नर भक्षियो को अब शूली चढ़वाने दो
बाधाओं को लांघ…
(3)
धन के लोभी नारी को जो रोज़ सताते हैं
क्रूर यातनाएँ देकर हत्या करवाते हैं
चाँदी के सिक्कों में बेटों को तुलवाते हैं
पशुओं की मानिंद उनकी बिक्री करवाते हैं
उनके चंगुल से नारी को मुक्त कराने दो
बाधाओं को लांघ..
(4)
जिस नारी को कुल्टा कहकर पुरुष सताता है
बेबश अबला पर अपना पौरुष दिखलाता है
पैर की जूती कहकर मन ही मन मुस्काता है
व्यंग बाणो की बौछारों से उसे रुलाता है
उस नारी को अब तो रणचंडी बन जाने दो
बाधाओं को लांघ…
(5)
जिस नारी ने गर्भ में अपने नर को पाला है
संकट की हर घड़ी में उसको सदा संभाला है
उस नर ने ही नारी को उलझन में डाला है
अहम् भावना ने नर को दम्भी कर डाला है
पुरुष दंभ से नारी को अब मुक्त कराने दो
बाधाओं को लांघ ..
(6)
गर्भ में ही गर्भस्थ शिशु को जो मरवाते हैं
बेटा-बेटी के अंतर को समझ ना पाते हैं
बेटों से बेटी सी सेवा कभी ना पाते हैं
वृद्धावस्था में जाकर फिर वो पछताते हैं
लिंग भेद की प्रथा को अब तो मिट जाने दो
प्रतिभा नारी को भी अपनी दिखलाने दो
बाधाओं को लांघ उसे बाहर आने दो !!
स्वरचित मौलिक
राजपाल यादव,गुरुग्राम,स्पेज सेक्टर-93(9717531426)
-मेरी नियति-
कब तक यूँ ही-
तिल-तिल कर
मरती रहूँगी मैं
हर दिन हर पल
ज़िंदा जलती रहूँगी मैं ?
कभी जली हूँ-
दहेज की ख़ातिर
कभी मिटी हूँ-
हवस की ख़ातिर
कभी होती हूँ-
घरेलू हिंसा की शिकार
तो कभी होता है मेरा
लव जेहाद के नाम पर व्यापार
आख़िर क्यों कर रहा है मुझसे
मेरी ही कोख से जन्मा मानव
दानव सरीखा व्यवहार ?
कब तक लड़ती रहूँगी मैं जंग
ज़िंदगी की-
जलती आग से
वहशी जल्लाद से
लव जेहाद से
दहेज लोलुप समाज से ?
क्या यही है मेरी नियति
तिल-तिल कर मरना और
ज़िंदा जलना..?
स्वरचित मौलिक
राजपाल यादव,गुरुग्राम(हरियाणा)
(स्त्रीनामा)
बहुत मुश्किल काम है स्त्री होना
स्त्री होकर दूसरों की भावनाओं को समझना-समझाना
स्त्री एक है रुप अनेक
कहीं माँ बन परिवार पालती है
कहीं पत्नी बन घर संभालती है
कहीं बहन बन भाई को दुलारती है
तो कभी बेटी बन घर-आँगन सँवारती है
कब वह चिड़िया बन आसमान में उड़ने लगेगी
कब धरती पर परिश्रम की चाशनी में गोते लगाएगी
पता नहीं चलता
लोग कहते हैं-
महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा
दया ममता करुणा ज़्यादा होती है
मैं कहता हूँ-
किसने कहा पुरुषों में दया ममता करुणा होती नहीं
दरअसल दया ममता करुणा मात्र महिलाओं की बपौती नहीं
कुछ पुरुष महिलाओं से भी अधिक
कोमल करुण संवेदनशील होते हैं
उनकी छाती में फूट-फूट कर
रोया भी जा सकता है और
निश्चिंत हो पहलू में सोया भी जा सकता है
सच तो यह है कि-
स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं
स्त्री अर्धांगिनी तो पुरुष उसकी ज़रूरत है !!
स्वरचित मौलिक
राजपाल यादव,गुरुग्राम(हरियाणा)
Last Updated on January 19, 2021 by rajpalyadavcil