शब्द तो भाव के भूखे है,
अभाव है,तो पूरी तरह से रखे हैं,
भावना है,तो निश्चित उसमें शक्ति है,
शक्ति का मनुहार ही उसकी भक्ति है,
सशक्त संबोधन से संज्ञायूं दौडी आती हैं,
जोश भर देने से फिर शक्ति सहित आती हैं,
शब्दो के भाव से ही बाण का प्रभाव है,
विशेषण के आवेग से आता उसमें वेग प्रवाह है,
उमंग भरे शब्दो से,मधुमास बने वनजारा है,
शब्द की शक्ति से अभेद्य राजमुकुट भी हारा है,
शब्दभेदी बाणों से पृथ्वीराज का आगाज़ है,
इसी से मिटे मुहम्मद गोरी का साम्राज्य है,
भाव भरे नि:शब्द में यदि भरे सर्वनाम है,
रस-रंग से मुकुट का करते काम तमाम है,
मत समझें शब्द शक्ति से अर्थशक्ति बलवान है,
यह तभी तक टिके हैं जब तक रचना मेहरबान है,
शिवाजी के जोश से छूटे औरंगजेब का पसीना है,
भाट होकर नहीं , हमें चाणक्य बनकर जीना है,
पहाडों को जो डुबो दे, बस ऐसी लहर देना है,
मदहोशी के रात में अब ऐसी खबर देना है,
क्रिया के वेग से तडपती उमंग का प्रभात हो,
शब्द मुक्त मात्राओं पर फिर आघात हो
दिशाहीन चुटकुले यूँ सशक्त दिशा बने,
“कबीर “या”नीरज” की वही विधा बने,
“महादेवी” के “पथ के राही” से हो मनन,
हो “भारत भारती ” जन का मनन।
Last Updated on December 31, 2020 by opgupta.kdl