आत्मबल
(जब जीवन में और निराशा घेर लेती है तब हमारे अपने भी हम से विमुख हो जाते हैं परंतु किसी भी स्थिति में मनुष्य को अपना आत्मबल नहीं खोना चाहिए यदि आत्मबल है तो वह अनेक झंझावातों से जीत सकता है और अपने सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकता है। सामाजिक विडंबना ओ में गिरे मनुष्य को निराशा से आशा की किरण दिखाती हुई, समर्पित है यह कविता)
आत्मबल
एक दिनअचानक
मुझसे कहा गया
सब खत्म हो गया
फूल अब धूल था
जीवन अब शांत था
मौसम भी वीरान था
ठहर गया तूफान था
थम गया हो उस पल
जैसे जीवन का मूलप्राण था
लेकिन क्या ये सच था ?
क्या उसे कभी ये हक था ?
फिर टटोला उस पल को
खोली आंखें , देखा खुद को
मैं थी , जीवन था , वही समय था
सीने में भरा वही आत्मबल था
नहीं किसी को हक़ भी इतना
छिने मुझसे जो मेरा मूल था
वो मुझे तोड़ेंगे क्या ?
नहीं जिनका कोई दीन धर्म था
फिर जाना मैंने, पहचाना
स्वयं के आत्मबल को
देखा ऊपर दिनकर
जो कह रहा
नहीं मिटती है रश्मियां
तूफान से फिर जाने से
कलुषित कहां होती, सिंहनी
शियारों से घिर जाने से
इसी विश्वास के साथ
मेरी कलम है संग
सजाने लगी हूं
जीवन के सुनहरे रंग
कवयित्री परिचय –
मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी)
राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत
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माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार
प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ l
उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार l
Last Updated on April 25, 2021 by mds.jmd