*अंतरराष्ट्रीय “प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता”*
शीर्षक : ” बसन्त “
होने लगा है जिस पल से मुझको
खुद में तेरे होने का एहसास।
मैं खो सी गई । मैं,मैं न रही ,
बस तू ही मुझमें ,बस तू ही ख़ास।
मेरे अन्तर्मन की गहराई में कभी
बहती नदिया की अविरल धारा।
और कभी लहरों का तूफाँ लेकर
सागर समा जाता सारा।
जैसे बसन्त के आने पर
धरती करती अपना श्रंगार।
तेरे एहसास की आहट से ,
बज उठता मन का तार-तार।
बार-बार ये करता प्रश्न
मेरा एकाकी और शंकित मन
कौन हो तुम? कहाँ से आए ?
बसन्त हो तुम या हो सावन ?
निरंतर समाते जा रहे हो
मेरे हृदय के धरातल में
मैं सकुचाई सी, मौन सी
सिमट रही बस आँचल में ।
यूँ ही सदा छाए रहना तुम
जीवन में मेरे ऋतुराज बसन्त।
मदमस्त ,बेफिक्र, अल्हड़ सी
तितली सी उडूँ जीवन-पर्यन्त।
यूँ ही सदा छाए रहना तुम
जीवन में मेरे ऋतुराज बसन्त.
(स्वरचित )
…समिधा नवीन वर्मा
लेखक/ब्लॉगर/अनुवादक/यूट्यूबर
पता: लवली लॉज, गिल कालोनी,
सहारनपुर (उत्तर प्रदेश )
भारत ।
Ph. 9456027187
Last Updated on January 17, 2021 by samidhanaveenvarma