न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

6 मैपलटन वे, टारनेट, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from 6 Mapleton Way, Tarneit, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

आंचलिकता और रेणु

Spread the love
image_pdfimage_print

                                                          डा० शबनम कुमारी
पीएचडी  (हिंदी) पटना विश्वविद्यालय

‘अंचल ‘,’आंचलिकता ‘ तथा अन्य समीपवर्ती शब्दों  की वास्तविक सामर्थ्य को समझना महत्वपूर्ण है।  हमारे शब्दकोशों में ‘अंचल ‘ का अर्थ ‘सीमा का समीपवर्ती ‘ भाग दिया गया है| ‘ये अंचल अधिकांशतः सीमा पर होने के कारण नागरी जीवन की केंद्रीय क्रियाशीलता और गतिविधियों से असंपृक्त होते हैं  और इसीलिए एक ही देश के भाग बने होकर भी जीवन – व्यबहार संबंधी  उनकी  अपनी संस्कृति , अपनी भाषा और अपनी विशिष्ट मानसिकता होती है जो उन्हें राष्ट्रीय सन्दर्भ में भी  विशिष्ट  बना  देती है  | …. अंचल का निजी जीवन ,लोक व्यव्हार ,नैतिक आदर्श और संस्कृति सबंधी विशिष्टताएँ ही समन्वित होकर ‘आंचलिकता’ कहलाती है |’1


आंचलिक उपन्यास की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए डा० रामदरश मिश्र कहते हैं कि – “जैसे  नई कविता ने सच्चाई से भोगे हुए अनुभव की भट्टी में तपे हुए पलों को व्यंजित में ही करने कविता की सुन्दरता देखी, वैसे ही उपन्यासों के क्षेत्र में आंचलिक उपन्यासों ने अनुभवहीन सामान्य या विराट के पीछे न दौडकर अनुभव की सीमा में आनेवाले अंचल विशेष को उपन्यास का क्षेत्र बनाया। आंचलिक उपन्यासकार जनपद-विशेष के बीच जीया होता है या कम से कम समीपी दृष्टा होता है। यह विश्वास के साथ वहाँ के पात्रों, वहाँ की समस्याओं, वहाँ के संबंधों, वहाँ के प्राकृतिक और सामाजिक परिवेश के समग्र रूपों, परंपराओं और प्रगतिओं को अंकित कर सकता है क्योंकि उसने उसे अनुभूति में उतारा है। आंचलिक उपन्यास लिखना मानों ह्रदय में किसी प्रदेश की कसमसाती हुई जीवन अनुभूति को वाणी देने का अनिवार्य प्रयास है। आंचलिक कथाकार को युग के जटिल जीवन बोध का नहीं, इसीलिए वह आज भी पिछड़े हुए जनपदों के सरल, निश्छल जीवन की ओर भागने में सुगमता अनुभव करता है, ऐसा कहना असत्य होगा।”2


हिन्दी साहित्य जगत के इतिहास में आंचलिकता शब्द की चर्चा सन् 1954 ई० में प्रकाशित ‘मैला आँचल’ के साथ ही शुरू हुआ। हालांकि 1953 ई० में यह, बिहार के एक स्थानीय प्रकाशन से छप चुका था। यहीं से आंचलिकता की चर्चा का आरंभ हुआ। ‘आंचलिक पद का प्रयोग भी संभवतः पहले – पहल ‘रेणु’ ने ही किया – “यह है मैला आँचल, एक आंचलिक उपन्यास। कथांचल है पूर्णिया। पूर्णिया बिहार राज्य का एक जिला। …. मैंने इसके एक हिस्से के एक ही गाँव को पिछड़े गाँवों का प्रतीक मानकर इस किताब का कथा क्षेत्र बनाया है।” 

यद्यपि सही अर्थों रेणु से पूर्व नागार्जुन ने ‘रतिनाथ की चाची’ (1948) तथा ‘बलचनमा’ (1952) के द्वारा आंचलिक उपन्यासों से हमारा परिचय कराया दिया था। हमारे हिन्दी के विद्वानों ने आंचलिक रचनाओं का वर्गीकरण शुरू कर दिया था। केई विद्वान के अनुसार प्रेमचंद आदि के रचनाओं में आंचलिकता देखी जा सकती है। परंतु तमाम चर्चाओं के बाबजूद फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की ‘मैला आँचल’ को ही हिन्दी साहित्य का प्रथम आंचलिक उपन्यास माना गया है।

सर्वप्रथम आंचलिक कृतियों की आवश्यकता- ” आंचलिक उपन्यास के माध्यम से हम उस अंचल की विशिष्ट सांस्कृतिक संपदा, प्राकृतिक मनोहर तथा वहाँ की भाषा-बोली की सहज मिठास का परिचय तो पाते ही हैं, साथ ही वहाँ के संस्कारों, वहाँ के जीवन की कटुता और विषमताओं तथा विद्रुपताओं का ज्ञान भी हमें प्राप्त होता है। आंचलिक उपन्यास ‘अंचल’ की स्थानीयता को महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति देते हैं। साथ ही व्यक्ति के सहज चरित्र का विवेचन आंचलिक उपन्यास का प्रमुख गुण माना जाना चाहिए।”4

हिन्दी गद्य लेखन ने बड़ी तेजी से अपनी विकास-यात्रा तय की हैं। पिछले दो-तीन दशकों में इसके विकास में और भी तीव्रता आई है, और विविधता की दृष्टि से भी नये-नये क्षेत्रों में प्रयोग हुए हैं। इस स्थिति में उपन्यास की प्रवृत्ति भी बदली हैं और शैली भी। आंचलिक उपन्यास मूलतः स्वातन्त्र्योत्तर युग की देन हैं। स्वतंत्रता से पूर्व राष्ट्रीयता के प्रभाव एक अंचल विशेष के यथार्थ अथवा उसकी सुन्दरता-असुन्दरता की ओर ध्यान देने का लेखक के पास अवकाश  नहीं था। स्वतंत्रता हमारी प्रथम आवश्यकता थी। यद्यपि प्रेमचंद जैसे लेखकों ने ग्राम्य जीवन को अपनी लेखनी का आधार बनाया परंतु उनमें हमें सिर्फ आंचलिक स्पर्श या स्थानीय रंगत ही दिखलाई पड़ता है। उस समय ग्रामीण जीवन को आधार बनाना गांधी जी के प्रेरणा स्वरुप था। स्वतंत्रता पश्चात् स्थिति में परिवर्तन आया। देश के प्रत्येक अंचल’ के उत्थान के लिए कार्य करने की प्रेरणा ने प्रशासन और साहित्यकार का ध्यान आकर्षित किया। ऐसे समय में साहित्यकारों ने प्रत्येक अंचल’ को एक संपूर्ण इकाई मानकर बड़ी सूक्ष्मता के साथ इन परिवेशों का अध्ययन किया है, इनके यथार्थ को पहचाना है, यहाँ की मिट्टी से संबंध स्थापित किया है, यहाँ की जलवायु को जीया है और यहाँ की भाषा बोली संस्कार, परंपराओं और रुढियों के गहरे मे जाकर यहाँ के परिवेश और चरित्र का उदघाटन करते हुए साहित्य को एक नयी विधा ‘आंचलिक साहित्य’ से अलंकृत और उपकृत किया है। 

हमारा विशाल भारत देश एक विस्तृत भू- भाग में फैला हुआ है। देश की परतंत्रता के कारण उनका अविकसित रह जाना स्वाभाविक है। ‘वास्तव में देखा जाए तो सोवियत रूस के अनुकरण पर भारत में भी पंचवर्षीय योजनाएँ शुरू हुई। नवनिर्माण के और विकास की प्रक्रिया में छोटे-छोटे अंचलों की और ध्यान जाना स्वभाविक था। सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया में छोटे – छोटे अपरिचित अंचलों की खोज ही आंचलिकता का मूल उत्स था। 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में जब अमेरिकी उपन्यासकारों- विटहार्ट और हैरेट बीयर स्टो ने सुदूर अमेरिकी अंचलों को ध्यान में रखकर उपन्यास लिखे तो उनका विशेष आग्रह इस पर था कि मध्यवर्गीय सोच नहीं हावी होनी चाहिए। अंचल का वैशिष्ट्य पत्रों के माध्यम से उनके जीवन-व्यव्हार के माध्यम से उभरकर आना चाहिए -लेखक के विचार की भूमिका वहाँ नगण्य रहनी चाहिए |(जैसा की नागार्जुन के उपन्यासों में है) इस आधार पर देखा जाये तो वास्तविक आंचलिक उपन्यास उड़िया लेखक गोपीनाथ मोहंती का ‘अमृत संतान ‘ है |5 हमारा देश विस्तृत भू -भाग होने के कारण आपने विविध संस्कृति की समाहित किये हुए है | इस तरह की समसामयिक स्थिति आंचलिक कृतियों की रचना के लिए सुदृढ़ आधार प्रदान करती है | 


आंचलिक गद्य साहित्य के विकसित होने के दो मुख्य कारण और भी थे – ‘गांधी का गाँव के प्रति लगाव ‘ और ‘भीगा हुआ यतार्थ का वर्णन ‘| हिंदी साहित्य पर महात्मा गाँधी का काफी प्रभाव रहा | ‘प्रेमचंद’ से लेकर ‘रेणु’ तक सभी साहित्यकारों ने अपने साहित्य में ‘गांधीवाद’ को प्रतिष्ठित किया है | गाँधी जी का नारा ‘हमारा वास्तविक भारत गाँव में बसता है ‘ से साहित्य में आंचलिकता को बढ़ावा मिला | यहाँ सुमित्रा नंदन पंत की कविता याद आती है :

“भारत माता ग्राम वासिनी
खेतों में फैला है श्यामला
धूल भरा मैला सा आँचल 
मिटटी की प्रतिमा उदासिनी

भारत माता ग्रामवासिनी |”
6 


आंचलिकता की अवधारणा बनने का दूसरा मुख्य कारण ‘ भोगा हुआ यथार्थ’ कहने की ललक तथा तमाम साहित्यकारों का ग्रामीण परिवेश से आना भी था |

सन् 1950 के आस पास ‘नई कहानी ‘ की प्रतिष्ठा करते हुए कमलेश्वर , मोहन राकेश तथा राजेंद्र यादव इत्यादि प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने साहित्य में ‘भोगे हुए यथार्थ’ का नारा प्रतिष्ठित किया | इससे यह हुआ जो साहित्यकार कस्बाई, महानगरीय आदि परिवेश से जुड़े थे , उन्होंने साहित्य में उस परिवेश की प्रतिष्ठा की और जो साहित्यकार (प्रेमचंद , नागार्जुन , रेणु , आदि ) ग्रामीण परिवेश से सम्बद्ध थे, उन्होंने साहित्य में ग्रामीण परिवेश की स्थापना की | इन्ही में से जो साहित्यकार सुदूर आंचलिक अथवा अत्यंत पिछड़े तबके से आये थे , उन्होंने साहित्य में वहां के सामाजिक – सांस्कृतिक परिवेश की प्रतिष्ठा की , जिसे रेणु ने ‘मैला आंचल’ में ‘आंचलिकता’ की एक व्यापक अवधारणा के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया |7

गोपाल राय लिखते हैं – “आँचल का व्यक्तित्व , उसकी संस्कृति अर्थात वहां की परम्पराओ , विश्वासों , रहन-सहन के तौर तरीकों , रीती रिवाजों , किवदंतियों , लोकगीतों , लोक कथाओं आदि से  बनता है | आंचलिक जीवन का एक सुपरिचित यथार्थ यह है की ग्रामीणों के समस्त संस्कार काम करने का एक -एक क्षण. पर्व. उत्सव , कर्मकांड , गीत – नृत्य आदि से जुड़े होते है |”8

रेणु जी का  ‘मैला आँचल ‘ वस्तु और शिल्प दोनों स्तरों पर सबसे अलग है | इसमें एक नए शिल्प में ग्रामीण-जीवन को चित्रित किया गया है। इसकी विशेषता है की इसका नायक कोई व्यक्ति नहीं वरन् पूरा का पूरा अंचल ही इसका नायक है। इस कथा वस्तु के माध्यम से पूर्णिया जिले के मेरी गंज गांव की सभयता , संस्कृति राजनीतिक गतिविधियों , आर्थिक और सामाजिक – सांस्कृतिक परिवेश का सही मायने में अंकन किया गया है | मैला आँचल में फणीश्वर नाथ रेणु ‘ जाति समाज और ‘वर्गचेतना’ के बीच विरोधाभास की कथा कहते है | आज इस इलाके को ‘मैला आँचल’ की दृष्टि से देखने पर जाति समीकरण और संसाधनों पर वर्चस्व की जातीय व्यवस्था उपन्यास के कथा समय के लगभग अनुरूप ही दीखता है | जातियाँ उपन्यास को कथा काल की हकीकत थीं और आज भी है।’मैला आँचल ‘ में स्वत्रंत होते और स्वंत्रता के तुरंत बाद के भारत की राजनितिक , आर्थिक , सामाजिक परिस्थितियों और परिदृश्यों का ग्रामीण और यथार्थ से भरा संस्करण है |9 रेणु के अनुसार – इसमें फूल भी है , शूल भी है , गुलाब भी है, कीचड़ भी है , चन्दन भी सुंदरता भी है , कुरूपता भी है – मैं किसी से दमन बचाकर भी नहीं निकल पाया | कथा की सारी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ साहित्य की दहलीज पर आ खड़ा हुआ हूँ, पता नहीं अच्छा किया या बुरा | जो भी हो , अपनी निष्ठा में कमी मससूस नहीं करता।10 इसमें गरीबी , भुखमरी , धर्मांधता में भरा हुआ व्यविचार, शोषण, अंधविश्वासों आदि का वर्णन है| 


‘एक तरफ यह उपन्यास आंचलिकता को जीवंत बताता है तो दूसरी तरफ उस समय का बोध भी दृष्टि गोचर होता है | ‘मेरी गंज ‘ में मलेरिआ केंद्र खुलने से वहाँ के जीवन में हलचल पैदा होती है | पर इसे खुलवाने में पैंतीस वषों की मशक्कत है और यह घटना वहाँ के लोगों की विज्ञान और आधुनिकता को अपनाने की हकीकत बयान करती है | भूत-प्रेत , टोना-टोटका , झाड़-फूक आदि में विश्वास करने वाली अंधविश्वाशी परंपरा गनेश की नानी की हत्या में दिखती है | साथ ही जाति-व्यवस्था का कट्टर रूप भी दिखाया गया है | सब डा० प्रशांत की जाति जानने के इच्छुक है | हर जातियों का अपना अलग टोला है | दलितों के टोले में सवर्ण विरले ही प्रवेश करते हैं , शायद तभी जब अपना स्वार्थ हो | छुआ-छूत का मामला है , भंडारे में हर जाति के लोग अलग-अलग पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं और किसी को इस पर आपत्ति नहीं है…. | इस उपन्यास की कथा वास्तु काफी रोचक है | चरित्रांकन जीवंत | भाषा इसका सशक्त पक्ष है | रेणु जी सरस व सजीव भाषा में परंपरा से प्रचलित लोक कथाएं , लोकगीत, लोक संगीत आदि को शब्दों में बांधकर तत्कालीन सामाजिक राजनीतिक परिवेश को हमारे सामने सफलतापूर्वक प्रस्तुत करते है | अपने अंचल को केंद्र में रखकर कथानक को ‘मेला आँचल’ द्वारा प्रस्तुत करने के कारण फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हिंदी में आंचलिक उपन्यास की परंपरा के प्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठित हुए |11 

आंचलिक स्पर्श से युक्त उल्लेखनीय कृतियों में रेणु के ‘दीर्घतपा’ और ‘जुलुस’ आदि है | किन्तु ”परती परिकथा’ के उपरान्त उनकी रचनाएँ आंचलिकता की स्पर्श मात्र बनकर रह जाती है | हालांकि ‘दीर्घतपा’ को पूर्ण आंचलिक मानने में लेखक खुद ही संकोच मससूस करता है और जुलुस अपनी भाषा और शिल्प में पूर्ण आंचलिकता लिए हुए हैँ | इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन उसकी यह भाषा और शिल्प-कुशलता परिवेश को अपनी सम्पूर्णता नहीं दे पाता है | इसकी वजह ग्रामोत्थान के लिये चलाई जाने वाली पचवर्षीय योजनाओ की बिफलता है | इसके कारण साहित्यकार का आंचलिक के प्रति मोहभंग भी दिखाई देने लगता है |

कहा जाता है कि लेखक के व्यक्तित्व का प्रभाव उनकी रचनाओं में अवश्य परिलक्षित होता है | फणीश्वरनाथ रेणु सिर्फ एक सृजनात्मक व्यक्तित्व के स्वामी ही नहीं बल्कि एक सजग नागरिक व देश भक्त भी थे | ‘1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में उन्होंने सक्रिय रूप से योगदान दिया | इस प्रकार एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप उन्होंने अपनी पाहचान बनाई | ….. ‘1950 में बिहार के पड़ोसी देश नेपाल में राज शाही  दमन बढ़ने पर वे नेपाल की जनता को राणा शाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के संकल्प के साथ वहाँ पहुंचे और वहाँ की जनता द्वारा जो सशत्र क्रांति व राजनीति की जा रही थी उसमे सक्रिय योगदान दिया | 1952-53 के दौरान वे बहुत लम्बे समय तक बीमार रहे | फलस्वरूप वे सक्रिय राजनीति से हट गये | उनका झुकाव साहित्य सृजन की ओर हुआ | 1954  में उनका पहला उपन्यास ‘मैला आँचल ‘ प्रकाशित हुआ | मैला आँचल उपन्यास को इतनी ख्याति मिली कि रातों रात उन्हें शीर्षस्थ हिंदी लेखकों में गिना जाने लगा |’12 

रेणु की लेखन शैली वर्णात्मक थी जिसमे पात्र के मनोवैज्ञानिक सोच का विवरण होता था | रचनाओं में पात्रों का चारित्रिक निर्माण तीव्रता से होता था क्योंकि पात्र एक सामान्य सरल मानव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता था। इनके कृतियों में आंचलिक पदों का बहुत ही ज्यादा प्रयोग दिखलाई पड़ती है |

अंततः फणीश्वरनाथ रेणु नई कहानी की दौर में ग्राम आँचल की विशिष्ट ताजगी और जीवंत अनुभूति को लेकर आनेवाले प्रमुख रचनाकार रहे हैं।अपनी आंचलिक कृतियों से हमारा परिचय कराने वाले बड़े साहित्यकार रेणु ने जिस मनःस्थिति में आकर अंचल विशेष को नायक बना कर कथाकाल की हकीकत को अपनी रचना में स्थान दिया है, वह हकीकत आज की भी है|

संदर्भ ग्रंथ सूची:-

  1. मैला आँचल की रचना-प्रक्रिया – डा० देवेश ठाकुर 
  2. हिंदी उपन्यास : एक अंतर्यात्रा  – राम दरश  मिश्र
  3. भूमिका – मैला आँचल : फणीश्वरनाथ रेणु 
  4. मैला आँचल की रचना-प्रक्रिया – डा० देवेश ठाकुर 
  5. आंचलिक उपन्यास की अवधारणा और मैला आँचल – सुनील कुमार अवस्थी 
  6. ग्राम्याः सुमित्रानंदन पंत
  7. आंचलिक उपन्यास की अवधारणा और मैला आँचल – सुनील कुमार अवस्थी   
  8. हिंदी उपन्यास का विकास – गोपाल राय 
  9. मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु-भारत कोश 
  10. मैला आँचल (हिन्दी ) अभिगमन तिथि 21 मार्च 2013 
  11. मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु भारत कोश
  12. फणीश्वरनाथ रेणु -भारत कोश


Last Updated on November 26, 2020 by srijanaustralia

Facebook
Twitter
LinkedIn

More to explorer

रिहाई कि इमरती

Spread the love

Spread the love Print 🖨 PDF 📄 eBook 📱रिहाई कि इमरती – स्वतंत्रता किसी भी प्राणि का जन्म सिद्ध अधिकार है जिसे

हिंदी

Spread the love

Spread the love Print 🖨 PDF 📄 eBook 📱   अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस – अंतर्मन अभिव्यक्ति है हृदय भाव कि धारा हैपल

Leave a Comment

error: Content is protected !!