न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

6 मैपलटन वे, टारनेट, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from 6 Mapleton Way, Tarneit, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

अभिसप्त जिंदगी

Spread the love
image_pdfimage_print

 

यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है भूत प्रेत पुनर्जन्म आदि तकिया नुकुसी बातो में आज का विज्ञान वैज्ञनिक युग का युवा वर्ग स्वीकार नहीं करता है।आज के इसी परिवेश में यह सत्य घटना सोचने को बिवस करती है की यदि मृत्यु के उपरांत भूत प्रेत पुनर्जन्म आदि कपोल कल्पना है
तो सत्य क्या है सनातन धर्म मतावलम्बियों का मत है की प्राणी अपने एक शारीर को त्यागने के बाद अपने कर्म गति का प्रारब्ध भोगने कर्मानुसार दूसरा शारीर धारण करता है तो स्लाम में कयामत में खुदा रूहो को उनकी नेकी वदी के अनुसार नया जिस्म तकसीम करेगा की मान्यता है।
यानी जीवन के बाद जीवन की मान्यता सभी धर्म सम्प्रदायों की मूल अवधारणा है ऐसे में विज्ञानं भी पैरा लाइफ के अस्तित्व को स्वीकार करता है वास्तव में प्रत्येक प्राणी निद्रा की स्तिति में पैरा लाइफ यानि चेतन मृत्युं अवस्था में रहता है ऐसे में यह घटना जो इस कहानी में का आधार है अनेको प्रश्न विज्ञान धर्म समाज के समक्ष प्रस्तुत करती है।
यह घटना बिहार के एक गाँव की है जो विकास की सम्भावना से दूर भोले भले भरितयो का गाँव है शंकर पुर पाठखौलि उसी गांव में लगभग साठ वर्ष पूर्व प्रभाकर पाठक प्रकांड विद्वान् गांव समाज में सम्मानित और क्षेत्र में एक मात्र उच्च शिक्षित व्यकि थे उनकी पत्नी प्रियंबदा पढ़ी लिखी तो नहीं थी मगर विद्वान के सानिध्य में पढ़ी लिखी से कम नहीं थी।पण्डित प्रभाकर पाठक का मूल व्यवसाय खेती और यजमानी था पंडित जी को किसी बात की कोई कमी नहीं थी ईश्वर की कृपा से धन यश कीर्ति सब उनको प्राप्त था।प्रभाकर पाठक और प्रियंबदा का लाडला आँख का तारा दुलारा एकमात्र संतान था प्रखर पंडित प्रभाकर पाठक प्रत्येक माँ बाप की तरह अपने बेटे प्रखर को भी प्रतापी और पराक्रमी पुत्र बनाना चाहते थे हर समय बेटे को धर्म, शात्र ,अनुशासन नियम ,साहस ,पुरुषार्थ का नियमित पाठ पढ़ाते बेटा प्रभाकर अपने पिता की हर सिख को अपना जीवन मूल्य मानकर स्वीकार कर आत्म साथ करता पूरा परिवार एक आदर्श परिवार की तरह पूरे गाँव में प्रेरक अनुकरणीय था गाँव के हर घर में पंडित प्रभाकर पाठक के आदर्श परिवार का जिक्र होता ।
पंडित प्रभाकर पाठक प्रति दिन शाम को लालटेन जलाते और प्रखर को साथ पढ़ने हेतु साथ बैठाते विद्यालय में जो पढाया जाता उसे पूछते और जो भी प्रखर की समझ नहीं आता वो समझाते पिता पुत्र में तमाम प्रश्न उत्तर का सिलसिला चलता और भोजन के उपरान्त दोनों सोने चले जाते पुनः ब्रह्मबेला में पंडित प्रभाकर उठते और बेटे प्रखर को जगाते और योगा प्राणायाम कराते स्वयं उसका मार्ग दर्शन करते नतीजा यह हुआ की दस वर्ष की उम्र आते आते प्रखर बहुत बुद्धिमान ओजश्वी लगने लगा पुरे गाँव को प्रखर के भविष्य के प्रति जागरूकता और अभिमान था सभी की यही मंशा थी की प्रखर उनके गांव का नाम रौशन करे और विश्वाश भी था की प्रखर अवश्य उनके गाँव का नाम रौशन करेगा।धीरे धीरे प्रखर दसवीं कक्षा में पहुँच गया जिसे आम भाषा में मेट्रिक कहते है प्रखर मेहनती लगनशील तो था ही उनसे अधिक एजाग्रता के साथ अध्ययन पर ध्यान के साथ जुट गया उसकी मेहनत रंग लाई और उसने मेट्रिक की परीक्षा पूरे जनपद गोपाल गंज में अव्वल स्थान प्राप्त किया पंडित प्रभाकर की खुशियों का ठिकाना न रहा उनकी बांछे खिल गयी।उनको अपने बेटे पर गर्व था बार बार ईश्वर का आभार व्यक्त करते एकाएक एक दिन पंडित प्रभाकर से प्रखर के शिक्षक सूर्य प्रकाश मिश्र से मुलाकात हो गयी मिश्र जी ने पंडित प्रभाकर को प्रखर जैसे पुत्र के पिता होने के गर्व को चार चाँद लगाते हुये बोले पाठक जी आप पर भगवान् की बड़ी कृपा है जो प्रखर जैसी संतान प्राप्त है जिसने पूरे क्षेत्र गाँव और आपके साथ साथ विद्यालय का नाम भी रौशन किया है हम विद्यालय की तरफ आपका आभार व्यक्त करते है की प्रखर जैसा होनहार के आप पिता है ।सूर्य प्रकाश मिश्र की बात सुनकर पंडित प्रभाकर पाठक ने बड़ी विनम्रता से कहा प्रखर की सफलता में मेरा योगदान कुछ भी नहीं असल में आप जैसे शिक्षक और विद्यालय का अनुशासन से ही प्रखर जैसे औलाद के हम अभिमानित आह्ल्लादित पिता है।
आप सभी आदरणीय शिक्षको एवम् विद्यालय के प्रति मैं कृतज्ञता और आभार व्यक्त करता हूँ ।
फिर पंडित प्रभाकर पाठक ने सूर्य प्रकाश मिश्र से पूछा मैट्रिक स्तर पर कोई ऐसी प्रतिस्पर्धा है जिसमे प्रखर को सहभागी बनाकर यह परखा जा सके की अखिल भारतीय स्तर पर प्रखर किस प्रकार अपने को प्रमाणित करता है सूर्य प्रकाश मिश्र ने तुरन्त कहा पाठक जी मेट्रिक स्तर पर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की परीक्षा अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित की जाती है जिसके माध्यम से देश सेवा के लिये सेना के अधिकारी तैयार किये जाते है मगर आपका तो एक ही बेटा है क्या आप इसे इस चुनौतीपूर्ण प्रतियोगिता में सम्मिलित होने की अनुमति देंगे
पंडित प्रभाकर पाठक ने कहा यह तो बड़े गौरव की बात है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है की धर्म युद्ध में लड़ता हुआ कोई भी विजयी होता है तो भौतिक सुखो को भोगता है और यदि वीर गति को प्राप्त होता है तो सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है दोनों ही स्थिति में प्रखर का ही भला है ।जो भी जन्मा है उसे मरना अवश्य है एक सम्मानित मृत्यु एक जलालत की जिंदगी दोनों में बहुत अंतर है मिश्र जी आप निश्चिन्त होकर प्रखर को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की प्रतिष्ठा पूर्ण एवं चुनौतीपूर्ण परीक्षा में आवेदन की औपचारिकता बताये पूर्ण कराएं।।
सूर्यप्रकाश मिश्र जी और प्रभाकर प्रभाकर पाठक अपने अपने घर आये प्रभाकर पाठक ने बेटे प्रखर से अपनी सूर्य प्रकाश मिश्र जी से हुई पूरी वार्ता का ब्यौरा सिलसिले वार सुनाया और राष्ट्रिय रक्षा अकादमी की चुनौती पूर्ण परीक्षा में सम्मिल्लित होने की प्रक्रिया बताकर आदेशात्मक लहजे में कहा प्रखर तुम इस परीक्षा में अवश्य सम्मिलित होंगे प्रखर ने आज्ञा कारी पुत्र की तरह आदेश पालन का पिता को आश्वत करते सोने को चला गया।
सुबह सुबह प्रखर उठा और राष्ट्रिय रक्षा अकादमी का आवेदन मांगने हेतु सारी औपचारिकतायें पूर्ण की एक माह में आवेदन फार्म आ गया जिसे भर कर निश्चित समय पर परीक्षा हेतु प्रेषित कर दिया।आवेदन करने के छ माह बाद परीक्षा हेतु प्रवेश पत्र आ गया प्रखर ने परीक्षा की तैयारी पूरी ईमानदारी से की थी और पूरे विश्वाश से परीक्षा दिया और पूरे भारत में प्रथम स्थान के साथ चयनित हुआ पिता प्रभाकर पाठक के साथ साथ पूरे गाँव क्षेत्र के लोंगो ने खुशियों इज़हार किया और गर्व की अनुभूति से आह्ल्लादित हुये।
प्रखर चार वर्ष के कठिन प्रशिक्षण पर सेना के प्रशिक्षण संस्थान चला गया और चार साल की कड़ी मेहनत लगन निष्ठां और समर्पण के बाद वहां भी प्रथम स्थान पाकर भारतीय सेना में अधिकारी नियुक्त हुआ ।
लगभग दो वर्ष के उपरांत इलाके के प्रतिष्टित संपन्न जमींदार पंडित दिन दयाल शुक्ल ने अपनी एकलौती पुत्री रम्या का विवाह प्रखर से बड़ी धूम धाम से किया रम्या भी बहुत खुश थी की उसने अपना सपनों का सहज़ादा पा लिया रम्या विदा होकर अपने गाँव मथौली से शंकरपुर पाठकौली आयी पंडित जी की खुशियों में पूरा क्षेत्र समल्लित था पूरा क्षेत्र पंडित प्रभाकर पाठक का आभारी कृतज्ञ था की उनके बेटे प्रखर ने पुरे क्षेत्र की प्रतिष्ठा को चार चाँद लगाया और गाँव क्षेत्र जवार जिला का मान बढ़ाया।।
विवाह के बाद प्रथम मिलन यानि सुहागरात प्रखर बड़े अरमानों को सजोये सज धज कर नयी नवेली दुल्हन के पास गया जहाँ रम्या सुहाग के सेज पर उसका इंतज़ार कर रही थी प्रखर अपनी नई नवेली दुल्हन के कक्ष में दाखिल हुआ और कमरे का दरवाजा बंद कर अपनी इंतज़ार करती दुल्हन की सेज पर पहुंचा और अरमानों के दिल उमंग के हाथ राम्या की तरफ बढ़ाते हुए प्रथम मिलान की निशानी के तौर पर हिरे का बेशकीमती हार गले में पहनकर
विस्तर पर बैठ कर बातें करते करते राम्या को अपनी वाहो के आगोश में समेटना चाहा तभी बड़ी भयंकर डरावनी आवाजे कमरे में गूंजने लगी जो प्रखर को तो सुनाई दे रही थी मगर राम्या निश्चिन्त थी उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था एकाएक।कमरे में भयानक आवाज़ गूंजी खबरदार
राम्या मेरी धरोहर है उसे हाथ मत
लगाना नहीं तो अच्छा नहीं होगा प्रखर आधुनिक वैग्यानिक भारतीय सेना का महत्व्पूर्ण अधिकारी था उसे भुत प्रेत आदि तकिया नुकुसी बातों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था अतः उसने बिना किसी खौफ के राम्या को पुनः अपने आगोश में भरना शुरू किया राम्या ना तो चेतन अवस्था में थी ना ही अचेतन पुनः कमरे में भयानक आवाजो का दौर शुरू हो गया प्रखर ने सोचा हो सकता है बाहर कोई बात हो उसने कमरा खोल कर बाहर का जायजा लिया बाहर सभी लोग निश्चिन्त सो रहे थे और किसी प्रकार का कोई शोर शराबा नहीं था उसे लगा की शादी व्याह में बाजे गाजे की आवाजें शोर शराबा थकान के कारण उसके कानो में भयंकर बन गूंज रहे है तो इस कारण अपने जीवन का खूबसूरत लम्हा क्यों गवाएं उसने पुनः दरवाजा बंद किया और राम्या से आलिंगन बद्ध हो गया इस बार दैत्य कार परछाई कमरे में आयी और बड़ी वीभत्स ठहाके लगाता बोला दुष्ट इंसान मैंने तुझको कितनी बार आगाह किया मगर तू है की मानता ही नहीं अब देख उसके इतना कहते ही राम्या विस्तर से हवा में उड़ती उस विकट विकराल परछाई के हाथों में चली गयी और पूरे कमरे में खून को वारिस होने लगी हट्टी के मानवीय अंगो की वारिस होने लगी और प्रखर को समझ नहीं आ रहा था की यह क्या माजरा है वह् अब भी निर्भय और निर्भीक
हो उस परछाई से रम्या को मुक्त कराने का प्रयास करता रहा एकाएक उसे महसूस हुआ की उसे उस परछाई ने उसे कमरे से बाहर फेंक दिया जहाँ वह् अचेत होकर पड़ा रहा जब सुबह हुआ और घर वाले जगे और देखा की प्रखर अचेत अवस्था में बाहर पड़ा है तो उनकी भी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था की आखिर माजरा क्या है? घर वालों की बड़ी मसक्कत के बाद प्रखर को होश आया होश में आने के बाद जब घर वालों ने पूछा की बहू कहाँ है मगर प्रखर को क़ोई घटना याद ही नहीं थी फिर पंडित प्रभाकर पाठक ने पत्मी प्रियंबदा से कहा की बहु का कमरा खोलवाकर बहु रम्या से ही वास्तविकता की जानकारी करो प्रियंबद ने बहु का कमरा खुलवाने की बहुत कोशिश की मगर दरवाजा नहीं खुला फिर प्रियंबदा ने पति प्रभाकर पाठक से कहा उन्होंने भी दरवाजा खुलवाने की बहुत कोशिश की मगर दरवाज़ा नहीं खुला घर के इज़्ज़त की बात थी अतः गाँव में यह बात किसी को बता न चले इसकी सबको फ़िक्र थी पंडित प्रभाकर पाठक ने सबसे पहले अपने समधी पंडित दिनडायल शुक्ल को बुलाकर इस घटना सत्यता की जानकारी देने का निश्चय किया वे स्वयं जाकर वास्तु स्थिति से समधी पंडित दीनदयाल शुक्ल जी को अवगत कराया शुक्ल जी को यह जानकार बड़ा आश्चर्य हुआ क्योकि बचपन से पच्चीस वर्ष तक रम्या बेटी घर रही है मगर कभी कोइ घटना नहीं हुई शुक्ल जी स्वयं समधी पंडित प्रभाकर पाठक के साथ चल पड़े पंडित प्रभाकर पाठक के गाँव शंकर पुर पाठकौली पहुंचकर जो नज़ारा देखा उनके तो होश ही उड़ गए रम्या के कमरे का दरवाजा बंद था और कमरे से अजीब सी डरावनी आवाजे आ रही थी पंडित दीन दयाल शुक्ल जी बड़ी चिंता में पड़ गए उन्होंने अपने समधी प्रभाकर पाठक से परामर्श करके समस्या के निवारण के लिये दोनों समाधियों ने किसी विद्वान् तांत्रिक से परामर्श लेने और समस्य के निवारण हेतुन प्रयास करने का निवेदन करने पर दोनों समधी एकमत हुयेव साथ विद्वान एवम् तंत्र विद्या के जानकार पंडित प्रद्युम्न दुबे के पास गए और उनसे घर चल कर समस्या के निवारण हेतु निवेदन किया पंडित प्रद्युम्न दुबे ने कहा जाने से कोइ फायदा नहीं है क्योकि मैंने आप लोंगो के आते ही समस्या का अंदाज़ा लगा लिया है रम्या के जीवन में जो आश्चर्य जनक घटना घट रही है उसके विषय में वह् अनजान है इस घटना का सम्बन्ध रम्या के पिछले जन्म से है जब तक रम्या अपने पिछले जन्म के वातावरण और परिस्थिति में नहीं जाती तब तक इस समस्या का समाधान सर्वथा असंभव है पिछले जन्म की किस परिवेश परिस्थिति से वर्तमान की घटना का सम्बन्ध है यह बाता पाना असंभव है। अतः आप दोनों जाए और ईश्वर से रम्या बिटिया की कुशलता के लिये प्रार्थना करें वहीँ रास्ता दिखा सकते है पंडित प्रभाकर पाठक एवं पंडित दीनदयाल शुक्ल जी निराश होकर लौट आए।कोई बिकल्प या समस्या सामाधान का रास्ता निकलता न देख दोनों निराश होकर ईश्वर की अद्भुत लीला को ईश्वर के हवाले छोड़ दिया कर भी क्या सकते थे ?दोनों ने नियति का निर्धारित खेल मानकर नियति और नियंता के फैसले का इंतज़ार कारने लगे धीरे धोरे यह बात शंकर पुर पटखौली में घर घर पूरे क्षेत्र जनपद प्रदेश में यह विषय कौतुहल और चर्चा का विषय बन गया हज़ारो लोग शंकतपुर पटखौली आते और रम्या के बंद कमरे तक जाते और कमरे से आती अज़ीब सी आवाजो को सुनते तरह की चर्चा करते और चले जाते पंडित प्रभाकर पाठक के परिवार का जीवन नर्क बन गया आये दिन हज़ारों लोंगो का ताँता सिर्फ रम्या के बंद कमरे तक जाती कमरे से आती भयंकर अजीब सी आवाजों को सुनाती चर्चा करते चले जाते इस बीच प्रखर भी बदहवास सा रहने लगा उसको यह समझ में नहीं आ रहा था की वह् क्या करे क्या ना करे इस बीच अजीब घटना शंकर पुर पाठखौलि में घटने लगी लोगों के जानवर गाय भैंस दस बारह साल के बच्चे गायब होने लगे गाँव और आस पास के इलाको में कोहराम मच गया निकट थाने की पुलिस के लिए नया सर दर्द आये दिन गायब होते जानवर और बच्चों के विषय में पता करना एक दिन में सिर्फ कोई एक जानवर या बच्चा गायब होता था इससे ज्यादा चिंता लोंगो की यह थी की जब से जानवर बच्चों का गायब होने का सिलसिला शुरू हुआ रम्या के कमरे से ताजे खून की धार निकलती जैसे किसी को निर्मायता पूर्वक काटा जाता हो इस सम्बन्ध में निकटवर्ती थाने को सुचना दी गयी थाने की पुलिस गायब हो रहे जानवरो बच्चों और रम्या के कमरे से निकल रहे खूंन की धार को एक साथ जोड़ते हुए रम्या का कमरा खुलवाने दरवाजा तोड़वाने के सभी वैज्ञानिक आधुनिक उप्लब्ध प्रयास किया मगर सफल नहीं हुई उलटेजो भी व्यक्ति दरवाजे को खोलने की प्रक्रिया में सम्मिल्लित होता उसके पूरे बदन पर घाव बन जाते जिनसे खून का रिसाव होता और उनके शारीर से सड़े मांस की बदबू आने लगाती अब पुलिस रम्या के कमरे तक जाने में हिचकिचाने क्या लगी उसने गाँव वालों को भी हिदायत दे दी की वे भी कदाचित भूल कर रम्या के कमरे तक न जाए पंडित प्रभाकर पाठक के परिवार वालों को पुलिस के इस फरमान से काफी राहत हुई अब पंडित जी के घर तमाशबीनों का जाना बंद हो गया लेकिन जानवर बच्चों का गायब होना और रम्या के कमरे से खून का आना नियमित की घटना थी
जिला प्रसाशन काफी गंभीरता बरत रहा था लेकिन बेबस लाचार किसी भी नतीज़े पर नहीं पहुच पा रहा था धीरे धीरे रम्या का कमरा बंद हुए
पंद्रह दिन हो चुके थे ।सोलहवे दिन अचानक चमत्कार की तरह रम्या के कमरे का दरवाज़ा खुला पंडित प्रभाकर पाठक और पत्नी प्रियंबदा और प्रखर एक साथ कमरे में दाखिल हुए देखा रम्या वैसी ही सुहाग पर बैठी थी जैसे वह् सज धज कर पंद्रह दिन पहले गयी थी जैसे ही उसने अपने कमरे में ससुर सास और पति प्रखर को देखा झट पलंग से उठ।कर सबका पैर छू कर आशिर्बाद लिया और सासु माँ की तरफ मुखातिब हो बोली अम्मा जी देखिये ना मैं कितने दिन से इनका पति की और इशारा करते हुये कहा इंतज़ार कर रही हूँ ये आये ही नहीं सासु ससुर भौचक्का रह गए समझ में नहीं आ रहा था माज़रा क्या है?
प्रखर को भी कुछ समझ में नही आ रहा था की क्या और क्यों बेवजह विचित्र अद्भुत घटनाएं उसके जीवन का हिस्सा बन रही है उसका इस जन्म और पूर्व जन्म का पाप क्या है वह नास्तिक तो नहीं था मगर किसी भूत प्रेत आदि में विश्वाश नहीं था उसका मानना था की आत्मा ईश्वर का ही स्वरुप ही है ईश्वर का स्वरुप किसी स्वरुप में विनाशकारी वीभत्स कैसे हो सकती है मगर सच्चाई का सामना वह स्वयं कर रहा था जिससे आत्मा परमात्मा के जीवन दर्शन से उसका विश्वाश डगमगाने लगा
देखने से नही लग रहा था की रम्या के कमरे में कोई असामान्य घटना घटी हो उसका कमरा ठीक जैसा था वैसा ही आज भी लग रहा था पंडित प्रभाकर पाठक प्रियंबदा प्रखर आश्चर्य और असमंजस से खिन्न और परेशान थे। उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था क्या करे क्या न करे बहु बार बार प्रखर से एक ही बात कह रही थी की मैं आपका इंतज़ार करती रही आप आये क्यों नहीं मुझमे क्या कमी है ? प्रखर प्रियंबदा ने बहु राम्या की हर तरह से मेडिकल चेक अप करने का निश्चय किया दानापुर मिलिट्री हॉस्पिटल और पटना मेडिकल कालेज में हर स्तर पर गहन मेडिकल जांच कराई गयी उसकी जांच रिपोर्ट पर डॉक्टर्स का एक पैनल गठित किया गया जिसने सभी संदेह का निवारण करते निर्णय दिया की रम्या को किसी प्रकार की कोई बीमारी ना तो मानसिक ना ही शारीरिक किसी प्रकार की कोईं बिमारी नहीं है।रम्या विल्कुल सामान्य व्यवहार और रहन सहन में थी उसे याद भी नहीं था की उसके आने के बाद पंद्रह दिनों तक क्या हंगामा बरपा ।धीरे धीरे पंद्रह दिन की अवधि बीत गयी सबने पूर्व की घटना को एक बुरा सपना हादसा मानकर भुलाना ही उचित समझ।सभी लोग रम्या से समान्य व्यवहार ही कर रहे थे जैसे कोई बात ही नहीं मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था धीरे धीरे रम्या के मासिक धर्म की तिथि आ गयी और जिस दिन वहः रजस्वला हुई उसी दिन से उसका कमरा पूर्व की भाँती बंद हो गया और पहले की भाँती रम्या के कमरे से डरावनी आवाजे ताजे खून की बहती धार गाँव और पुरे क्षेत्र से जानवरों इंसानो का गायब होने का सिलसिला बादस्तूर जारी रहा पुलिस रम्या के कमरे से खून की धार का नियमित आना और लोंगो जानवरों का निरंतर गायब होने की कड़ी को साथ अवश्य जोड़ रही थी मगर किसी सबूत के अभाव में बेवस लाचार थी कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी धीरे धीरे गांव और क्षेत्र के लोंगो के सब्र का बाँध टूट गया और पंडित प्रभाकर पाठक के परिवार के प्रति आस्था निष्ठा का सब्र जबाब दे गया सभी एक पंडित प्रभाकर के दरवाजे पर एकत्र होकर उनसे राम्या को घर से बाहर हटाने के लिये दबाव डालना शुरू कर दिया पंडित जी निरुत्तर कुछ भी कहने में असमर्थ थे प्रखर पिता की लाचारी पुत्र मोह देखकर अपने सेना के शीर्ष अधिकारियों को वस्तु स्थिति से अवगत कराया सेना के अधिकारियों द्वारा प्रखर को सलाह दी गयी की वह रम्या को साथ लेकर सीधे पूना के सैनिक अस्पताल आये प्रखर अब रम्या के कमरे का दरवाजा खुलने का इंतज़ार करने लगा रम्या के रजस्वला के ठीक पंद्रह दिन बाद कमरे का दरवाजा खुला और वह् विल्कुल सामान्य या यूं कहा जाय जैसे कोई बात हुई नहीं एक बात और परेशान करने वाली यह थी की पंद्रह दिनों में उसे भूख या जीवन की अन्य आवश्यकता महसूस नहीं होती यदि बहोती है तो उसकी संसाधन कहाँ से उपलब्ध होते होंगे ?क्योकि कमरे में कही से भी बाहर आने जाने का रास्ता नहीं है वैसे भी गाँव में नई नवेली दुल्हनों का कमरा घर का सबसे सुरक्षित कमरा होता है।प्रखर बिना बिलम्ब किये पूना सैनिक अस्पताल ले जाने की तयारी पूरी करके एक दिन बाद ही वह् पून के लिये माँ प्रियमब्दा और पिता प्रभाकर के साथ गाँव के घर में ताला बंद करके निकल गया दो दिन बाद वहः पूना पहुँच गया चूँकि यह प्रकरण कमांड स्तर तक मालूम था अतः अस्पताल प्रशासन ने पहले से ही व्यवस्था कर राखी थी पहुंचते ही रम्या को अस्पताल में दाखिल कराया गया उसे विशिष्ठ वार्ड में निगरानी हेतु रखा गया छोटी से छोटी बड़ी से बड़ी जाँच कराई गई मगर रम्या को किसी प्रकार की क़ोई बीमारी नहीं निकली डॉक्टर्स का एक राष्ट्रिय स्तर का पैनल पूरे प्रकरण पर माथा पच्ची कर ही रहा था की लगभग बारह तेरह दिन बाद रम्या के मासिक धर्म की तिथि आई और राजश्वला होते ही पूना का सैनिक कमांड हॉस्पिटल जिसमे रम्या भर्ती थी कौतुहल का स्थान और लोंगो के भीड़ का केंद्र बन गया एकाएक रम्या का वह कमरा जिसमे रम्या को अस्पताल प्रशासन ने भर्ती कर रखा था अपने आप बंद हो गया कमरे के अंदर से अजीब सी आवाजे आने लगी और कमरे से खून की धार बहने लगी चुकी मामला सेना का था जहां लोंगो। को मौत से भी निर्भीक रहने की ट्रेनिंग दी जाती है घराहट चिंता अवश्य थी। मगर भय नहीं था यहाँ भी शहर से पशुओ और मनुष्यो का एकाएक गायब होने का सिलसिला शुरू हो गया मगर यहाँ ख़ास बात यह थी की कंटोमेन्ट इलाके में ऐसी वारदात नहीं होती थी।अस्पताल प्रशासन ने चौबीसो घंटे निगरानी की व्यवस्था मगर कोई फायदा नहीं हुआ।सभी डॉक्टर्स इस अति विशिष्ठ केस पर अपनी योग्यता अनुभव का प्रयोग कर रहे थे मगर सब बेकार अब प्रखर के पास भी कोई विकल्प नहीं बचा था की रम्या को उसके पिता के पास भेज दे उसने रम्या के पिता श्री शुक्ल जी को बुलाने के लिये टेलीग्राम भेजा इधर मिलिट्री के कमांड हॉस्पिटल में ही नहीं लगभग सारे देश में इस विशेष घटना के चर्चे थे चूँकि उस वक्त मिडिया इतना तेज नहीं था कानो कान पूरा प्रकरण पुरे देश में चर्चा का विषय बन गया धीरे धीरे पंद्रह दिन। समाप्त हुए रम्या एकदम सामान्य व्यवहार से अपने बेड पर सुरक्षित थी रम्या के पिता सीधे सेना के अस्पताल पहुंचे वहाँ पहुँचते ही पंडित प्रभाकर पाठक आग बबूला होकर बोले आपको मेरा ही बेटा मिला था जीते जी फांसी पर लटकाने के लिये शुक्ल जी बेटी के बाप थे अतः कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा हलाकि पाठक जी और शुक्ला जी के रसूख मे जमीन आसमान का अंतर था पाठक जी ने कहा जब से रम्या मेरे घर आयी है हम लोंगो की जिंदगी जीते जी नर्क हो गयी है आच्छी खासी प्रतिष्ठा समाप्त हो गयी है गांव घर छुटने के कागार पर है हम पर दया कीजिये आप अपनी बेटी अपने घर ले जाइए दोनों परिवारों के बीच वातावरण कटुता की पराकाष्ठा को पार कर चुका था दोनों परिवारों ने सेना अस्पताल को ही कुरुक्षेत्र का मैदान बना लिया था ।प्रखर रम्या कुछ भी बोल सकने की स्थिति में ही नहीं थे दोनों परिवारों में तकरार की खबर अस्पताल में फ़ैल गयी अस्पताल के प्रमुक डॉ रहेजा वहां पहुंचे और उन्होंने पाठक जी से कहा महोदय मैंने इस अजीबोगरीब केस के विषय में बात अपने मित्र जो सिलटे अमेरिका में डॉक्टर है से बात की उन्होंने हमसे इस अजीब केस को स्वयं देखने को कहा है और वे आ रहे है अतः आप लोग उनके आने तक एवम् रम्या के जीवन में घटती घटनाओ को एक बार और होने दो केवल प्रयोगात्मक तौर पर यह मेरा निवेदन है।शुक्ला जी के पास तो कोई विकल्प नहीं था पाठक जी ने भी दबे मन से चुप्पी साध ली सिलटे से डॉक्टर मॉरिशन एक विशेषज्ञ दल के साथ भारत पहुँचे आते ही उन्होंने सेना हॉस्पिटल के उस पैनल से बात की जिसकी निगरानी में पंद्रह दिनों तक रम्या वार्ड में वंद थी। फिर उन्होंने सभी जांच एवम् चिकित्सा जो दी जा चुकी थी का स्वयं बड़ी गंभीरता से अपने पूरे दल के साथ अध्य्यन किया मगर कोई क्लू नहीं मिल रहा था।अतः डा मॉरिशन के नेतृत्व में पूरा जांच दल इस बात से सहमत हुआ की अब प्रत्यक्ष घटित होने वाली घटना को देखा जाय।वह समय भी नजदीक आ गया जो वक्त रम्या के साथ घटित होने वाली अजीबो गरीब घटनाओं का दौर शुरू होता रम्या पुनः कमरे में बंद हो गयी और उसके कमरे से अजीबो गरीब आवाजे आने लगी एवम् खून की धार कमरे से बहने लगी डॉ मोरिसन ने कमरे से आती आवाजो को रिकार्ड करने की कोशिश करते रहे मगर कोई आवाज़ रिकार्ड नहीं हुआ कमरे से बहते खून का लैबोरेट्री टेस्ट कराया परन्तु टेस्ट में खून के कोई लक्षण नहीं मिलते डॉ मोरिसन की पूरी टीम ने पूरी योग्यता सिद्दत से सभी संभव प्रयास किया मगर नतीजा शून्य निकाला पंद्रह दिन बीत गए मगर डॉ मोरिसन की पूरी टीम को कोई बात समझ में नहीं आयी साथ ही साथ और भी कन्फ्यूज होकर् उलझ कर परेशान हो गयी अतंत हार मानकर लौट गयी ।अब रम्या के पिता शुक्ल जी हताश निराश प्रभाकर पाठक से बोले पाठक जी मैं अपनी पुत्री को अपने साथ ले जा रहा हूँ सिर्फ यह निवेदन करता हूँ की आप आपकी पत्नी और प्रखर मेरे साथ मेरे गाँव तक चले ताकि मेरे गाँव वालों को सच्चाई आप लोग बता सकें और मेरी बेटी चैन से मर सके पाठक जी उनकी पत्नी को इस बात में कोई आपत्ति नहीं हुई जल्दी जल्दी सेना अस्पताल की औचरिकता पूर्ण करके शुक्ल जी समधी प्रभाकर पाठक और दामाद प्रखर समधिनि प्रियंबदा के साथ घर चलने को निकल पड़े ज्यो ही शहर से बाहर निकले भगवान कृष्ण एक बहुत प्राचीन मंदिर पर भगवान् का दर्शन करने के लिये रुके उसी समय मंदिर के पुजारी ने रम्या को देखा और शुक्ल जी से बोले आप बेटी रम्या को लेकर गाँव क्यों जा रहे है इसकी मुक्ति तो बस्तर के जंगल के वनदेवी के यहाँ होनी है आप सभी इसे लेकर तुरंत जाए कही देर ना हो जाए शुक्ल जी ने स्वामी ब्रह्मदत्त का आशिर्बाद लिया और पूर्व निधारित टिकट को बिना वापस किये बस्तर की यात्रा को निकल पड़े सभी लोग साथ थे दो दिन की यात्रा के बाद बस्तर पहुंचे चूँकि सभी लोग रिजर्व टैक्सी से बस्तर पहुंचे वहां एक दिन विश्राम करने के उपरान्त दूसरे दिन उसी टैक्सी से वस्तर् के भीषण जंगलो की तरफ चल पड़े उस समय बस्तर पिछड़ा आदि वासी क्षेत्र था लगभग चार घंटे की यात्रा के बाद सभी बस्तर जंगल के मध्य स्थित वन देवी के मंदिर पहुंचे मंदिर से कुछ दुरी पर केंद्रीय रिजर्ब बल की एक बटालियन तैनात थी और मध्य प्रदेश पुलिस का पोलिस स्टेशन भी था पंडित प्रभाकर पाठक और प्रियम्बदा प्रखर शुक्ला जी ने मंदिर में पूजा अर्चना की लगभग एक घंटे मंदिर में पूजा अर्चना करके ज्यो ही शुक्ल जी पाठक जी प्रियंबदा प्रखर और रम्या मंदिर से बाहर निकले ठीक उसी वक्त मंदिर से कूछ दूर स्थित पुलिस थाने के सामने दो शेर एक दूसरे को दौड़ते हुये आ धमके पुलिस दल और केंद्रीय रिजर्व बल जवानो में अफरा तफरी मच गयी चुकी वह् इलाका अक्सर सुन सानं रहता किसी को जाने की इज़ाज़त नहीं रहती बेहद ख़ास परिस्थिति में उस रस्ते पर जाने की अनुमति मिलती चूँकि प्रखर भारतीय सेना का अधिकारी था अतः उसे जाने की अनुमति पूजा पाठ के लिये मिल गयी थी शोर शराबा होने पर प्रखर सबको एक साथ एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चलने के लिये एक दूसरे का हाथ खुद पकड़ लिया बाकी सदस्यों ने भी मानव श्रंखला की तरह आपस में एक
दूसरे से जुड़ गए और बचाव की मुद्रा अख्तियार कर ली लगभग सौ मीटर आगे स्थित थाने के जवानो और केंद्रीय रिजर्व पुलिस के जवानों ने आपस में लड़ते और खुद की और बढ़ते शेरो से बचाव के लिये अपनी अपनी बंदूके उठा ली क्योंकि जंगल में भागना शेर से भी कठिन चुनौती थी फिर फायर करना शुरू किया शेर कभी जंगल में पेड़ की ओट में चले जाते और कभी दिखने लगते बंदूको की फायर की आवाज़ से प्रखर तो नहीं मगर प्रखर के पिता रम्या प्रियंबदा और शुक्ल जी दहसत में किसी अनहोनी की आशंका में भयाक्रांत थे उधर रुक रुक कर फायर होता जा रहा था इसी बीच बहुत जोर का अंधड़ तेज रफ़्तार से आया सब एक दूसरे से हाथ छुड़ाते भागने की कोशिश करने लगे बाकि सब तो बन देवी के मंदिर में पहुंच गए मगर रम्या पता नहीं कैसे घनघोर जंगल में लगभग डेढ से दो किलोमीटर अंदर चली गयी वह् भाग ही रही थी की थी उसके कानो में तेज आवाज़ आई कहाँ भाग रही हो मैं तुम्हारा वर्षो से इंतज़ार कर रहा हूँ रम्या एकाएक रुकी और उसे लगा की शायद उसके पीछे भाग रहे उसके पिता सास या पति या ससुर की आवाज़ हो मगर खड़ा होकर देखा तो चारो तरफ निर्जन सुन सान प्रखर उसके पिता जी माता जी और उसके पिता जी का दूर दूर तक कही कोई नामोनिशान नहीं था फिर वही कड़कती आवाज़ बिराने को तोड़ती गूंजी घबड़ाओ नहीं राजकुमारी पूषा यहाँ तुम विल्कुल सुरक्षित हो मै पिछले तीन सौ वर्षो से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ जब से तुमने मेरे सीने में मेरी ही तीर से वार किया उस दिन से आज तक मेरे शारीर से खून का रिसाव हो रहा है वह् शारीर तो तुम्हारे मारे तीर से छुट गया मैं जन्म दर जन्म लेता गया लेकिन दो चीजे नहीं भूली एक तो तुम्हारी मारी तीर का घाव और तुमसे मेरा प्यार राजकुमारी पुषा कुछ याद आया तुमको ?राम्या ने चिल्लाते हुए कहा क्यों परेशान कर रहे हो मुझे कुछ भी याद नहीं आया फिर वही आवाज़ गुर्राई जब तक तुम मेरे प्यार को स्वीकार नहीं करती तब तक तुम्हे कभी चैन नहीं मिल सकता है ।रम्या ने कहा कौन हो तुम क्यों मेरे पीछे पड़े हो सामने क्यों नहीं आते ?पूषा मैं सामने तब तक नहीं आ सकता जब तक तुम मेरे प्यार को स्वीकार नहीं कर लेती पूषा तुम ओरछा राजा की पुत्री थीं तुम अपने पिता के साथ शिकार खेलने और सीखने की जिद्द की और पुत्री हठ में पिता ने तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार कर तुम्हे शिकार पर साथ लेकर आये उनके साथ सेना की टुकड़ी भी थी तुम शिकार सिखने और प्रवीणता हासिल करने की जिद्द पिता से करती और पिता पुत्री प्रेम में शिकार की अवधि एक एक दिन बढ़ाते जाते इसी प्रकार एक एक दिन के चक्कर में महीनो बीत गए इस दौरान तुम्हारे राजसी गुरुर ने ना जाने कितने ही निरीह जानवरों का वध कर डाला जिस दिन तुम शिकार के प्रशिक्षण से लौट रही थी तभी एक मादा शीरनी का शिकार करने हेतु उसका पिछा करते करते इन्ही जंगलो में इतनी दूर चली आई जिसका तुम्हे अंदाजा ही नहीं था तुम्हारे पिता ओरछा नरेश को यक़ीन था की तुम निपुण शिकारी हो एवँम अस्त्र शत्र की पारंगत हो अतः डरने की कोई बात नहीं वह् तुम्हारा जंगल के बाहर इंतज़ार करते रहे इसी बीच हमारे कुमरा जन जाती के लोग वहा पहुँच गए और तुम्हे वध कर तुम्हारा मांस खाने की नियत से बंधक बनाकर ले आये पीछे पीछे तुम्हारा स्वामी भक्त घोडा भी आ गया जब मेरे साथी तुम्हे लेकर आये और वध करने ही वाले थे
लेकिन जब मैंने तुम्हे देखा तो मुझे तुम पर दया आ गयी और मैने अपने साथियो को समझाया मनाया और तुम्हे गोद में उठाकर इसी पेड़ पर बने अपने झोपड़ी में लाया चूँकि हम लोग कोई वस्त्र नहीं पहनते अतः राजकुमारी भय और लाज से आपका चेहरा लाल हो गया था और आप मुझ जैसे बेरहम आदि मानव को भी प्रेम के आमन्त्रण को विवश कर दिया मैंने राज कुमारी तुम्हारे वस्त्र फाड़ डाले देखा की तुम उस वक्त रजस्वला थी मगर हमारे समुदाय का सिर्फ एक ही नियम है सिर्फ जीना मैंने तुम्हारे साथ जबरजस्ती वासना तृप्त करनी चाही तभी तूने मेरी पीठ पर लगे तरकस से एक जगरीली तीर मुझे प्यार का धोखा देकर निकाला मेरे सीने में भोंक दिया और तुम पेड़ से नीचे अपने घोड़े पर कूद कर भाग गयी राजकुमारी पूषा याद आया कुछ? तभी राजकारी पूषा को सारी घटना याद आ गयी और वह पेड़ से लिपट कर अपना प्यार इज़हार करने लगी तभी लगभग बाइस तेईस फुट का लम्बा नौजवान पेड़ से निकला जिसकी छाती में पूषा ने तीर घोप दिया था पूषा डील डौल में उस बिशालकाय नौजवान के सामने बच्ची लग रही थी पुनः उसने पूषा को गोद में उठाया और अपने उसी अंदाज़ में पेड़ की उसी डाली पर ले गया जहाँ से पूषा उसके सीने में तीर भोंक कर भागी थी और उसने अपना तरकस तीर पूषा को दे दिया कहा पूषा अबकी बार धोखे से नहीं मैं तुम्हे खुद को एक तीर और मारने के लिये अनुरोध करता हूँ पूषा ने तीर और तरकश फेक दिया और फूंट फूंट कर रोने लगी और लिपट कर बोली मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ ।इधर आपस में लड़ते शेर भी जाने कहाँ चले गए पता नहीं चला केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल एवम् मध्य प्रदेश पुलिश ने फायरिंग बंद कर दिया अंधड़ की तेज हवा भी बंद हो गयी तब पंडित प्रभाकर पाठक प्रियंबदा
शुक्ला जी रम्या को खोजने लगे शुक्ला जी ने खीज कर् कहा क्यों आप लोग उसे खोज रहे है चली गयी ठीक ही हुआ आप सभी सकट से मुक्त हुये अब किसी को जलालत नहीं झेलनी होगी मुँह नही छुपाना पड़ेगा अच्छा ही हुआ हमे भी अब चैन से मरना नसीब होगा तभी पंडित प्रभाकर ने कहा शुक्ल जी आप कैसी बात कर रहे है बेटा प्रखर कोई जुगत लगा जिससे रम्या को हम लोग खोज सके तभी प्रखर ने कहा हम लोग पोलिस स्टेशन चलते है उनको जंगल के बारे में पता है सभी पोलिस स्टेशन पहुंचे उन लोंगों ने पोलिस और केंद्रीय रिजर्व बल से रम्या के एकाएक गायब होने की व्यथा बताई तुरंत ही पोलिस और केंद्रीय रिजर्व बल के जवान और पंडित प्रभाकर के साथ रम्या को खोजने चल दिये करीब तीन घण्टे की मसक्कत के बाद सभी वहाँ पहुंचे जहां रम्या पेड़ से लिपटी हुई थी और उसके आँखों से अश्रु धार बह रही थी प्रखर सबसे पहले रम्या के पास गया बोला तुम इस भयंकर जंगल मे जीवित सुरक्षित हो ईश्वर का बड़ी कृपा है रम्या ने प्रखर का हाथ झटकते हुए कहा मैं रम्या नही पूषा हूँ मै ओरछा के राजा की बेटी हूँ मेरा पति यह कुमरा है तुम लोग कौन हो तभी आकाश में बिजली कड़कने जैसी आवाज आई और रम्या बेहोश होकर गिर पड़ी। जोर जोर से आवाज आने लगी पुषा तुमने मेरे प्यार को मान दिया सम्मान दिया अब मेरी आत्मा तुम्हारे प्यार की आत्मा से मिल गयी है अब तुम सदा निडर बेखौफ रहो वहां उपस्तित सबने आवाज़ सुनी पर कौन कहाँ से बोल रहा है पता नही चला सब लोग पुनः पुलिस बल और केंद्रीय सुरक्षा बल का धन्यबाद करके अपने घर को प्रस्थान कर दिया दो दिन की यात्र के बाद लोग अपने गांव पहुंचे वहां जश्न का माहौल था क्योंकि जो लोग या पशु बच्चे गायब थे सब यथावत मौजूद थे पंडित प्रभाकर और प्रखर को देख गांव के साथ सारे क्षेत्र के लोग माफी मांगी और पुनः परिवार की गरिमा रम्या बहु के साथ लौट आयी।।

कहानीकार
नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर

Last Updated on February 10, 2021 by nandlalmanitripathi

Facebook
Twitter
LinkedIn

More to explorer

रिहाई कि इमरती

Spread the love

Spread the love Print 🖨 PDF 📄 eBook 📱रिहाई कि इमरती – स्वतंत्रता किसी भी प्राणि का जन्म सिद्ध अधिकार है जिसे

हिंदी

Spread the love

Spread the love Print 🖨 PDF 📄 eBook 📱   अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस – अंतर्मन अभिव्यक्ति है हृदय भाव कि धारा हैपल

Leave a Comment

error: Content is protected !!