मेरी हार्दिक इच्छा है
कि लोग भूल जाएंँ,
पपड़ियों की तरह उधड़ते,
पंखुड़ियों की बिखरते,
उद्वेलित नश्वरता की क्षणभंगुरता
में झड़ता मेरा चेहरा
और रूप-रंग!
पर सदियों तक
उनके मन-मस्तिष्क में,
मेरे शब्द और कविताएँ
कुछ इस तरह सदानीरा
बन कर बस जाएंँ,
जैसे सभ्यता-संस्कृति के विकास में
चट्टानों को फोड़ कर,
सरिता प्रवाहित होती है।
Last Updated on January 27, 2021 by pandeysaritagomoh