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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

6 मैपलटन वे, टारनेट, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from 6 Mapleton Way, Tarneit, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

*कफ़न में ज़ेब नहीं-सब यहीं धरा रह जायेगा*

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*कफ़न में जेब नहीं-सब यहीं धरा रह जायेगा*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

जी रहा है आदमी कपड़े बदल बदल कर।
ले जायेंगे 1दिन लोग कन्धा बदल-2 कर।

जबतक ये साँस चलती है मगरूर रहते हैं।
थमती हैं सांसें जब जाने क्या-2 कहते हैं।

जाने किस घमंड में इंसान हमेशा रहता है।
दुनिया तो ये मेला है आता जाता रहता है।

पहले जैसे अब क्यों मुहब्बत न दिखती है।
मुँह से बोलतेहैं इंसा दिल में कपट रहती है।

आयेगा न काम कुछभी माया ये छलावा है।
प्रेम से तो जी कर देखो गम ना पछतावा है।

अमर तो नहींहै कोई धरती पर जो आया है।
जाना ही पड़ेगा उसको जहाँ से वो आया है।

आज रोज चाहे बदलो कपड़े तरह तरह का।
जाते समय तो सभी पहनते हैं एक तरह का।

कफ़न का रंग तो हमेशा ही एक सा होता है।
चाहे मजदूर हो या राजा येसभी का होता है।

यही कफ़न तो केवल सभीके साथ जाता है।
कफ़न में जेबें नहीं सबयहीं धरा रह जाता है।

मुकाम कोईभी तुम्हें हासिल भलेही हो जाये।
सब है बेकार अगर इंसानियत भी नहीं आये।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता, इंडिया

संपर्क : 9415350596

Last Updated on February 16, 2021 by dr.vinaysrivastava

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